महात्मा गाँधी भारत में कैसा किसान और मज़दूर चाहते थे?
BBC
''हिंसा से अधिकार प्राप्त करने का रास्ता आसान तो लगता है लेकिन अंतत: वह दुरूह सिद्ध होता है. जो तलवार चलाते हैं, अक्सर वे तलवार से ही मरते हैं. तैराकों की मृत्यु बहुधा पानी में ही होती है.''
यह सवाल किससे पूछें कि महात्मा गांधी पहले किसान थे या मजदूर? उनसे पूछेंगे तो वे अपने सरल जवाब से आपको लाजवाब कर देंगे कि अरे, यह ऐसा सवाल हुआ कि जैसे आप पूछ रहे हैं कि मैं पहले सांस लेता हूँ कि छोड़ता हूँ!
क्या आपको इतना भी मालूम नहीं है कि जो किसान होता है, वह मजदूर न हो, यह संभव ही नहीं है! किसानी-खेती ऐसा उद्यम है जो किसान की मज़दूरी के बिना संभव ही नहीं है.
लेकिन गांधी जी के इस जवाब को किनारे रख कर हम उनका इतिहास देखें तो कहानी कुछ ऐसी बनती मिलती है.
दक्षिण अफ्रीका में धुंआधार बैरिस्टरी कर रहे भारतीय मोहनदास करमचंद गांधी ने जब जीवन और जीवनाधार दोनों बदला तो ज़मीन का एक बड़ा-सा टुकड़ा ख़रीद कर, पहले फीनिक्स में और फिर रूसी साहित्यकार-दार्शनिक टॉल्सटॉय के नाम पर बसाया अपना आश्रम टॉल्सटॉय फार्म !
यह आश्रम बसाने से पहले उनके हाथ लगी थी दार्शनिक रस्किन की किताब 'अन टू दिस लास्ट' कि जिसने उनके मन में यह विचार और विश्वास जगाया कि हमारी सभ्यता ने सुख-सुविधा का जो संसार रचा है, वह सुख-सुविधा यदि क़तार में खड़े सबसे अंतिम आदमी तक नहीं पहुँचती है, तो यह व्यवस्था घातक और शोषक बनती जाएगी.