
ममता की कीमत पर लेफ्ट या लेफ्ट की कीमत पर ममता....कांग्रेस के लिए कहां फायदा?
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ममता बनर्जी ने एकला चलो का नारा बुलंद कर कांग्रेस को फंसा दिया है. दीदी के दांव से डैमेज कंट्रोल के मोड में आई कांग्रेस ऐसे दोराहे पर खड़ी हो गई है जहां से उसे ममता की कीमत पर लेफ्ट या लेफ्ट की कीमत पर ममता का साथ चुनना होगा. कांग्रेस के लिए कहां फायदा है?
ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया है कि लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) लोकसभा चुनाव में अकेले ही मैदान में उतरेगी. ममता के इस ऐलान के बाद कोलकाता से दिल्ली तक हलचल मची हुई है. कांग्रेस डैमेज कंट्रोल के मोड में आ गई है. ममता के खिलाफ मुखर रहने वाले पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने चुप्पी साध ली है तो वहीं लेफ्ट अब और आक्रामक हो गया है. माकपा पश्चिम बंगाल के सचिव मोहम्मद सलीम ने नीतीश कुमार के एक पुराने बयान का जिक्र करते हुए ममता बनर्जी की बिन पेंदी के लोटे से तुलना कर दी और दावा किया कि बीजेपी और संघ के इशारे पर टीएमसी बनी जिससे कांग्रेस को तोड़कर ममता बनर्जी एनडीए में जा सकें.
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लेफ्ट नेता सलीम के इस बयान में कुछ आश्चर्यजनक भी नहीं है, ना ही स्टैंड में किसी तरह का बदलाव ही नजर आ रहा है. लेफ्ट नेता इंडिया गठबंधन की बेंगलुरु में हुई दूसरी बैठक से लेकर दिल्ली में हुई चौथी बैठक और अब तक यह दो टूक कहते आए हैं कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी से गठबंधन नहीं होगा. ममता बनर्जी ने भी पिछले दिनों यह आरोप लगाया था कि लेफ्ट गठबंधन को रूल करने की कोशिश कर रहा है. अब लेफ्ट का अड़ियल रुख और ममता बनर्जी की क्लियर लाइन, पश्चिम बंगाल की सियासत में ऐसे दोराहे पर खड़ी हो गई है जहां से एक रास्ता लेफ्ट के साथ जाता है जिस रास्ते पर वह पहले से ही है. और दूसरा रास्ता ममता बनर्जी की पार्टी के साथ जाता है.
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लेफ्ट और टीएमसी का साथ आना मुश्किल ही है और ऐसे में अब कांग्रेस इस सवाल में उलझ गई है कि लेफ्ट का पुराना साथ चुनें या ममता की शर्तें मानकर उनके साथ चलें. कांग्रेस को लेफ्ट की कीमत पर ममता का साथ चुनना होगा या ममता की कीमत पर लेफ्ट का. अब चर्चा का सेंटर पॉइंट यह भी है कि कांग्रेस के लिए आखिर कहां फायदा है?
कांग्रेस का किसके साथ जाने में फायदा

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