
मन्नू भंडारी का लेखन और हम लेखिकाओं पर उनका असर
BBC
मन्नू भंडारी नई कहानी आंदोलन का हिस्सा रहीं, जिसकी शुरुआत कमलेश्वर, मोहन राकेश, राजेंद्र यादव और भीष्म साहनी जैसे लेखकों ने की थी. उन्होंने नए दौर के बनते भारत की महिलाओं के संघर्ष और चुनौतियों को अपनी रचनाओं के केंद्र में रखा.
मन्नू भंडारी के लेखन की बोधगम्यता उनके व्यक्तित्व की सहजता है.
उनके लेखन और व्यवहार में कोई फाँक नहीं है. 90 वर्ष की उम्र में उनके निधन के बाद समूचा साहित्य जगत और उनका बड़ा पाठक वर्ग शोक में डूब गया है. वो लंबे समय से बीमार चल रही थीं और उनका लेखन भी लगभग छूट चुका था. फिर भी वे हमेशा स्त्री लेखन की मज़बूत कड़ी बनी रहीं.
उनके निधन से साहित्य जगत में जो शून्य आया है, उसकी भरपाई असंभव है. वे उस दौर में लेखन कर रही थीं, जब स्त्रियाँ कम लिख रही थीं. उनकी संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती है.
उस समय भारतीय समाज संक्रमण काल से गुजर रहा था. मध्यवर्गीय परिवारों में विखंडन शुरू हो चुका था और स्त्रियाँ अपनी अस्मिता को लेकर मुखर हो रही थीं.
मन्नू जी ऐसे दौर में एक सुधारवादी नज़रिया लेकर कथा जगत में आती हैं. उसी दौर में स्त्रियाँ घरों से बाहर निकलीं और कामकाज़ी बनीं. उनका जीवन बदला और सोच भी बदली. इस यथार्थ और बदलाव को मन्नू जी कई कोणों से देख-समझ रही थीं.