मनीष गुप्ता की मृत्यु फिर एक मौक़ा है कि उत्तर प्रदेश के लोग यह साबित करें कि वे ज़िंदा इंसान हैं
The Wire
उत्तर प्रदेश पुलिस की बुनियादी गै़र क़ानूनी हरकत पर सवाल नहीं किया गया है. हम मान बैठे हैं कि पुलिस को कहीं भी, किसी भी वक़्त बेधड़क घुस जाने, किसी को, किसी भी अवस्था में उठा लेने का हक़ है. वह मारपीट कर सकती है, यह तो उसे सच उगलवाने के लिए करना ही पड़ता है: यही हमारी समझ है और इसलिए पुलिस कार्रवाई में कोई मारा जाए, इससे तब तक विचलित नहीं होते जब तक वह हमारा अपना न हो.
गोरखपुर में एक पुलिस कार्रवाई के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मनीष गुप्ता की मौत के बाद उनकी पत्नी के क्षोभ को जो सार्वजनिक समर्थन मिला, उससे विचलित होकर उत्तर प्रदेश सरकार ने उस कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है.
प्रदेश के मुख्यमंत्री ने मनीष गुप्ता की पत्नी को अनुकंपा के आधार पर नौकरी का वादा किया और बच्चे की पढ़ाई के खर्चे के लिए सरकार की तरफ से रुपये जमा कराने का भरोसा दिलाया. ऐसा बतलाया जाता है कि वे मुख्यमंत्री के इस कदम से संतुष्ट हैं.
इसके पहले हमने मनीष गुप्ता की पत्नी को बिलखते देखा और मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से रो-रोकर अपने मारे गए पति के लिए या अपने और अपने बच्चे के लिए इंसाफ की गुहार सुनी. यह दयनीय दृश्य था.
इस दृश्य में दया उपजाने का प्रयास था, अपनी असहाय स्थिति का विलाप था, नागरिक के अधिकार का दावा कहीं न था. अन्याय के भाव से पैदा हुआ क्रोध न था. यह भारतीय गणराज्य के मृत्यु विलाप से कम न था.