
'मदरसों में नहीं मिल रही बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन...', NCPCR ने किया विरोध, SC में सुनवाई आज
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NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी दलील में कहा कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है. मदरसे जरूरी शैक्षिक माहौल और सुविधाएं प्रदान करने में असमर्थ हैं, जिससे बच्चों को अच्छी और समुचित शिक्षा के उनके अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है.
सुप्रीम कोर्ट आज (बुधवार) इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यूपी के मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले के खिलाफ दायर अर्जी पर अहम सुनवाई करेगा. इस दौरान राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने अपनी लिखित दलील में मदरसों में दी जा रही शिक्षा का विरोध किया है.
NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी दलील में कहा कि मदरसों में बच्चों को औपचारिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है. मदरसे जरूरी शैक्षिक माहौल और सुविधाएं प्रदान करने में असमर्थ हैं, जिससे बच्चों को अच्छी और समुचित शिक्षा के उनके अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है.
आयोग ने बताया कि चूंकि मदरसे शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून के दायरे में नहीं आते, इसलिए यहां पढ़ने वाले बच्चे न केवल औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, बल्कि उन्हें मिड डे मील, यूनिफॉर्म, और प्रशिक्षित शिक्षकों जैसी आवश्यक सुविधाएं भी नहीं मिलतीं. मदरसों में धार्मिक शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाता है, जबकि मुख्यधारा की शिक्षा में उनकी भागीदारी बहुत कम होती है.
NCPCR ने यह भी कहा कि सर्वेक्षण के दौरान यूपी, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में पाया गया कि बहुत से मदरसों में गैर-मुस्लिम बच्चे भी पढ़ रहे हैं, जिन्हें इस्लामिक धार्मिक परंपराओं की शिक्षा दी जा रही है. आयोग ने इसे संविधान के अनुच्छेद 28(3) का उल्लंघन बताया. इसके साथ ही आयोग ने दारुल उलूम, देवबंद की वेबसाइट पर मौजूद कुछ आपत्तिजनक फतवों का भी जिक्र किया. NCPCR के अनुसार, एक फतवे में नाबालिग लड़की के साथ फिजिकल रिलेशनशिप को लेकर भ्रामक और आपत्तिजनक सुझाव दिया गया था, जो पॉक्सो एक्ट का उल्लंघन है. इसके अलावा, आत्मघाती हमलों से संबंधित एक अन्य फतवे ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है.
आयोग का कहना है कि दारुल उलूम के फतवे "गजवा-ए-हिंद" जैसे विचारों को बढ़ावा देते हैं, जो बच्चों के मन में अपने देश के प्रति नफरत पैदा कर सकते हैं.

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