मजबूरी में पराली जलाते हैं किसान! दिल्ली के शख्स ने प्रदूषण कम करने के लिए निकाला समाधान
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दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए आनंद विहार में रहने वाले अर्पित ने बहुत बढ़िया समाधान निकाला है. 2020 में अर्पित ने बढ़ते प्रदूषण के कारण को समझना शुरू किया और 2 साल की रिसर्च के बाद एक ऐसा जैविक प्रोडक्ट बनाया, जिसमें पराली का इस्तेमाल किया जाता है.
दिल्ली और आसपास के इलाके में हर साल दिवाली के आसपास प्रदूषण लोगों को परेशान करता है. प्रदूषण जिसका सबसे बड़ा कारण है आस पास के खेतों में जलने वाली पराली. राजधानी दिल्ली में सर्दियां आते-आते हवा जहरीली होने लगती है, दिल्ली गैस चैम्बर में तब्दील हो जाती है और हर साल दिल्ली वाले इस जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हो जाते हैं. ऐसे में दिल्ली की इस परेशानी का एक हल निकाला है, दिल्ली के रहने वाले अर्पित धूपर ने जो पराली का इस्तेमाल कर जैविक प्रॉक्ट्स बना रहे हैं.
दिल्ली के प्रदूषण को कम करने की एक कोशिश अर्पित आनंद विहार में रहते हैं, जहां हर साल सबसे अधिक प्रदूषण दर्ज किया जाता है. अर्पित ने प्रदूषण को कोसने के बजाय बढ़ते प्रदूषण की जड़ को समझना शुरू किया और पाया कि जो पराली जलाई जाती है, उसी पराली का अगर इस्तेमाल किया जाए तो उसे जलने से भी रोका जा सकता है और एक उपयोगी इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है. 2020 में अर्पित ने बढ़ते प्रदूषण के कारण को समझना शुरू किया और 2 साल की रिसर्च के बाद एक ऐसा जैविक प्रोडक्ट बनाया जिसमें पराली का इस्तेमाल किया जाता है.
एक साथ दो समस्याओं का निकाला हल अर्पित ने 2 साल रिसर्च करके यह समझा कि पराली से कुछ ऐसे जैविक प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं जो कि इको फ्रेंडली हों और पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचाएं और उनका इस्तेमाल भी बड़े पैमाने में किया जा सके. अर्पित ने पराली और मशरूम के मिक्सर से एक ऐसा जैविक पदार्थ बनाया है जो थर्माकॉल के जैसे होता है और उसका इस्तेमाल भी थर्माकॉल के बदले किया जा सकता है. इस जैविक पदार्थ की मदद से अर्पित ने पराली का सही इस्तेमाल और थर्माकॉल का विकल्प भी ढूंढ निकाला है.
किसान मजबूरी में जलाते हैं पराली अर्पित ने जब खेतों में जाकर किसानों से बात की तो जाना, किसान खुद भी अपनी परली नहीं जलाना चाहते. पहला कारण पराली जलाने से सबसे पहले धुआं उनके आसपास के घरों में जाता है फिर बाद में दिल्ली एनसीआर तक आता है और दूसरा कारण पराली जलाने के बाद मिट्टी कठोर हो जाती है उसे फिर से उपजाऊ बनाने के लिए उन्हें अधिक मात्रा में यूरिया डालना पड़ता है जिसके लिए अधिक पैसा और मेहनत लगती है, मगर समय कम होने की वजह से और कोई विकल्प न होने के कारण किसानों को मजबूरी में पराली जलानी पड़ती है.
पराली के बदले पैसे अर्पित ने किसानों की समस्या को जाना और एक ऐसा तरीका निकाला कि जिससे पराली भी निकल जाए और उसके बदले किसानों को पैसे भी मिलें. अर्पित किसानों से ढाई हजार रुपये टन पराली खरीदते हैं और फिर उसे फरीदाबाद लाकर बायोडिग्रेडेबल प्रोडक्ट्स बनाते हैं, यह प्रोडक्ट्स पैकेजिंग में इस्तेमाल होते हैं और बड़े स्केल पर थर्माकॉल का विकल्प भी बन सकते हैं. अर्पित का कहना है कि अगर ट्रांसपोर्टेशन में मदद मिले तो अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचा जा सकता है और उनसे पराली खरीद कर उस पराली का बायोडिग्रेडेबल प्रोडक्ट बनाया जा सकता है जो कि दिल्ली के प्रदूषण को काफ़ी हद तक कम करने में कारगर साबित होगा.
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