मक्खन लाल बिंद्रूः चरमपंथियों के ख़ौफ़ और चाचा की हत्या के बाद भी नहीं छोड़ा कश्मीर
BBC
90 के दशक में जब कश्मीर में चरमपंथ ने ज़ोर पकड़ा और कश्मीरी पंडित वहाँ से निकलने लगे, तो मक्खन लाल बिंद्रू ने ना केवल कश्मीर नहीं छोड़ने का फ़ैसला किया बल्कि कश्मीरियों की सेवा के लिए अपने बेटे बहू को दिल्ली से बुला लिया.
जाने माने फार्मासिस्ट मक्खन लाल बिंद्रू समेत पांच लोगों की हत्या ने उन लगभग 1,000 कश्मीरी हिंदुओं (पंडितों) के परिवारों में चिंता पैदा कर दी है जिन्होंने 1990 में सशस्त्र विद्रोह छिड़ने और हज़ारों की संख्या में हिंदुओं के कश्मीर छोड़ने के फ़ैसले के बावजूद वहीं रहने का फ़ैसला लिया था.
मक्खन लाल बिंद्रू बीते चालीस साल से भी अधिक समय से वहां दवाइयां बेचते थे और वे एक घरेलू नाम बन चुके थे. 68 वर्षीय मक्खन लाल बिंद्रू की मंगलवार देर शाम श्रीनगर के इक़बाल पार्क में उनके दुकान बिंद्रु हेल्थ ज़ोन पर गोली मार कर हत्या कर दी.
सामाजिक कार्यकर्ता सतीश महलदार के अनुसार, एमएल बिंद्रू ने 1970 में खुदरा फार्मेसी का व्यवसाय शुरू किया था.
महलदार कहते हैं, "आम लोगों के बीच में उन्होंने इतना विश्वास अर्जित कर लिया था कि उनकी दुकान पर भीड़ लगी होती थी और उनकी पत्नी को काम में हाथ बंटाना पड़ता था."