
भुट्टो की फांसी: जब चीन ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री को शरण देने की पेशकश की
BBC
जब चीन के उप प्रधानमंत्री डेंग शियाओपिंग ने कहा कि अगर वह आना चाहें तो हम उन्हें क़बूल करने के लिए तैयार होंगे.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फ़िक़ार अली भुट्टो को जनरल ज़िया उल हक़ के हाथों अपदस्थ किए जाने के लगभग आठ महीने बाद 18 मार्च 1978 को लाहौर हाई कोर्ट ने उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई थी.
इस फ़ैसले से पहले और फांसी तक भुट्टो को जीवनदान दिलाने के लिए की गई दुनिया भर की कोशिशों और उन्हें नकारने के लिए ज़िया के तिकड़मों समेत बहुत कुछ ऐसा हुआ जो उस समय सार्वजनिक न हो सका था.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कुछ दिनों पहले इससे संबंधित दस्तावेज़ों को प्रकाशित किया है.
कूटनीतिक दस्तावेज़ों के अनुसार पाकिस्तान में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत आर्थर विलियम हमल जूनियर ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय को एक टेलीग्राम (3 सितंबर 1977) में कहा था कि चीफ़ मार्शल लॉ एडमिनिस्ट्रेटर जनरल ज़िया उल हक़ अमेरिकी सरकार को भुट्टो की गिरफ़्तारी के बारे बताना चाहते हैं.
उसी दिन दूतावास ने रेडियो पाकिस्तान के हवाले से यह सूचना दी कि भुट्टो को 'कराची में तीन सितंबर की सुबह नेशनल असेंबली के पूर्व सदस्य और उनके पूर्व समर्थक अहमद रज़ा क़सूरी के पिता नवाब मोहम्मद ख़ान क़सूरी की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है.'