'भारत ने कच्चातिवु द्वीप वापस लिया तो...', जानें डिप्लोमैट क्यों कर रहे विवाद को लेकर आगाह
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कच्चातिवु द्वीप पर विवाद को लेकर पूर्व राजनयिकों ने मोदी सरकार को सावधानी बरतने की सलाह दी है. उनका कहना है कि जमीनी हकीकत को बदलना मुश्किल है. राजनयिकों की मानें तो, इससे देश की विश्ववसनीयता पर चोट पहुंचेगी.
साल 2014 में जब तमिलनाडु की पार्टियों ने मिलकर कच्चातिवु द्वीप को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी तब केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ चेतावनी दी थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर इस द्वीप को वापस लेना है तो श्रीलंका के साथ युद्ध करना पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था, '1974 में हुए एक समझौते के तहत कच्चातिवु श्रीलंका को मिल गया था. यह श्रीलंका को सौंप दिया गया था और अब यह दोनों देशों के बीच एक सीमा की तरह काम करता है. आज हम इसे वापस कैसे ले सकते हैं? अगर आप चाहते हैं कि कच्चातिवु एक बार फिर हमारा हो तो आपको इसे पाने के लिए युद्ध करना पड़ेगा.'
एक दशक बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस मामले ने तूल पकड़ा है जिसने भारत और श्रीलंका के बीच तनाव की स्थिति पैदा कर दी है. भारत और श्रीलंका के रिश्तों को समझने वाले पूर्व राजनयिकों ने इस मामले को लेकर सतर्कता बरतने की सलाह दी है.
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (2010-2014) और श्रीलंका में भारत के उच्चायुक्त रहे शिव शंकर मेनन ने 'द हिंदू' से बातचीत में कहा, 'जमीन पर यथास्थिति को बदल पाना बेहद मुश्किल है, लेकिन इस तरह के मुद्दे को देश के नेतृत्व की तरफ से उठाया जाना देश की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाएगा और यह निजी स्वार्थ हो सकता है.'
'जब सरकारें बदलती हैं तब संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता...'
श्रीलंका में उच्चायुक्त रह चुके अशोक कांता ने 'द हिंदू' से बातचीत में कहा कि जब सरकारें बदलती हैं तब संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता नहीं बदलती. वो कहते हैं, 'अगर सरकार इस तरह को मामलों को खोलती है तो यह एक बुरा उदाहरण पेश करता है. अगर वास्तविक समझौते में कोई बदलाव होता है तो भारत के पड़ोसियों के साथ समझौतों का पूरा खांचा ही गड़बड़ हो जाएगा.'
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