‘भारत के प्रगतिशील और उदारवादियों की समस्या है कि वे अपना घेरा तोड़कर समाज के बीच नहीं जाते’
The Wire
साक्षात्कार: हाल ही में आए अपने संस्मरणों के संकलन ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक उर्मिलेश ने अपने अनुभवों के माध्यम से देश के उच्च शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया में बरते जाने वाले जातिवादी रवैये को रेखांकित किया है. इस किताब को लेकर उनसे बातचीत.
एक सामान्य पाठक के मन में सबसे पहले तो किताब का शीर्षक ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ ही कौतुहल पैदा करता है क्योंकि ग़ाज़ीपुर और क्रिस्टोफर कॉडवेल दो ध्रुव की तरह हैं. इस रहस्यमयी शीर्षक के पीछे की वजह क्या है? मेरी इस किताब में 12 चैप्टर हैं. इनमें से तीन में जाति और वर्ण व्यवस्था के प्रकोप को शिद्दत के साथ उभारा गया है, जिससे भारतीय समाज काफी प्रभावित हुआ है और इस वजह से वह बेहतर समाज बनने की दिशा में पीछे छूटा है. इन तीन चैप्टर में अकादमिक और मीडिया, इन दोनों क्षेत्रों के कुछ नमूने पेश किए गए हैं और इन नमूनों और स्मृतियों के जरिये और कुछ तथ्यों के साथ बात को आगे बढ़ाया गया है. अगर पूरी किताब को देखा जाए तो ये संस्मरण हैं और ये मेरे छात्र जीवन के साथ पत्रकार बनने के बाद और पत्रकार बनने के दौर के संस्मरण हैं. जब मैं पत्रकार बनने की जद्दोजहद कर रहा था कि मजबूरी में कैसे एक पत्रकार बना जाता है. क्योंकि पत्रकार बनने का मेरा कोई सपना नहीं था और मैं कभी सोचा नहीं था कि मुझे पत्रकार बनना है. मैं तो शिक्षक बनने के लिए पढ़ रहा था. मेरे पूरे जीवन का सपना किसी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर या अध्यापक बनना था. तो वह जो मेरा सपना पूरा नहीं हुआ और कैसे मैं पत्रकार बनने के लिए मजबूर हुआ और पत्रकार बनने में क्या-क्या परेशानियां हुईं, वह भी मैंने सामने रखी हैं. फिर मैंने पत्रकारिता से अपनी खुशी का भी इजहार किया है. ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ वास्तव में अपनेआप में एक अजीब नाम है और एक रहस्य बुनता है. लोगों को लगता है कि ग़ाज़ीपुर में लॉर्ड कार्नवालिस तो हो सकते हैं लेकिन ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल कहां से आ गए. लॉर्ड कार्नवालिस इसलिए क्योंकि वह भारत के ऐसे लॉर्ड थे जिनकी मौत वहीं हुई थी और जैसा आप जानते हैं कि उस ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था और उन्हें वहीं दफनाया गया था. वहां उनका स्मारक आज भी है.More Related News