
भारत की मदद से चल पड़ी थी ज़िंदगी, अब क्या होगा मालूम नहीं - अफ़ग़ान महिलाओं का दर्द
BBC
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण के बाद वहां के हालात के बारे में उन अफ़ग़ान महिलाओं ने अपनी कहानी बताई जिनकी ज़िंदगी भारत से मिली मदद के बाद काफ़ी बदल गई थी.
मनीषा पांड्या स्वयंसेवी महिलाओं की संस्था 'सेवा' से जुड़ी हैं. वे 2007 से 2020 के बीच 94 बार अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा कर चुकी हैं. मनीषा और 'सेवा' से जुड़ी दूसरी महिलाएं अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं के साथ पिछले डेढ़ दशक से काम कर रही हैं. हालांकि ये काम भविष्य में जारी रहेगा या नहीं, अब इस पर सवालिया निशान लग गया है. मनीषा को अफ़ग़ानिस्तान से कुछ महिलाओं का संदेश मिला है कि अब क्या होगा? तालिबान शासन के लौटने के बाद इस सवाल का जवाब फ़िलहाल किसी के पास नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल और चार दूसरे शहरों में 'सेवा' की मदद से महिलाओं की संस्था 'सबा बाग़-ए-ख़जाना सोशल एसोसिएशन' की स्थापना हुई थी, लेकिन संस्था के केंद्र फ़िलहाल बंद हैं क्योंकि महिलाएं काम करने के लिए केंद्र पर नहीं आ सकतीं. 2007-2008 से सेवा संस्थान से जुड़ी महिलाओं ने अफ़ग़ान महिलाओं के साथ काम करना शुरू किया. पहले भारत और अफ़ग़ानिस्तान की सरकारों ने इसमें मदद की और फिर अमेरिकी सरकार इस अभियान में 2017 तक मदद करती रही.More Related News