
भगत सिंह जानते थे कि असमानता व भेदभाव पर आधारित शोषण निठल्ले चिंतन से ख़त्म नहीं होंगे
The Wire
विशेष: भगत सिंह चाहते थे कि स्वतंत्र भारत प्रगतिशील विचारों पर आधारित ऐसा देश बने, जिसमें सबके लिए समता व सामाजिक न्याय सुलभ हो. ऐसा तभी संभव है, जब उसके निवासी ऐसी वर्गचेतना से संपन्न हो जाएं, जो उन्हें आपस में ही लड़ने से रोके. तभी वे समझ सकेंगे कि उनके असली दुश्मन वे पूंजीपति हैं, जो उनके ख़िलाफ़ तमाम हथकंडे अपनाते रहते हैं.
आज की तारीख में यह एक खुला हुआ तथ्य है कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु द्वारा अविभाजित भारत की लाहौर सेंट्रल जेल में आज के ही दिन दी गई शहादतें ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकने भर के लिए नहीं बल्कि मुकम्मल आजादी के लिए थीं. ‘जिस दिन देशवासी समझ गए कि संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं और उनकी भलाई इसी में है कि वे धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाएं और सरकार की ताकत अपने हाथ में लेने का यत्न करें, उस दिन कहीं कोई समस्या रह ही नहीं जाएगी.’ ‘हमारे देश जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए….. 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो 6 करोड़ लोग अछूत कहलाते हैं, उनके स्पर्शमात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा! उनके मंदिरों में प्रवेश से देवगण नाराज हो उठेंगे! कुएं से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआं अपवित्र हो जाएगा!’ ‘हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है, लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते हैं, जबकि पूर्णतया भौतिकवादी कहलाने वाला यूरोप कई सदियों से इंकलाब की आवाज उठा रहा है….रूस ने भी हर प्रकार का भेदभाव मिटाकर क्रांति के लिए कमर कसी हुई है. (लेकिन) हम इस बहस में उलझे हुए हैं कि क्या अछूत को जनेऊ दे दिया जाएगा? वे वेद-शास्त्र पढ़ने के अधिकारी हैं अथवा नहीं? ‘जब तुम उन्हें इस तरह पशुओं से भी गया-बीता समझोगे, तो वह जरूर ही दूसरे धर्मों में शामिल हो जाएंगे, जिनमें उन्हें अधिक अधिकार मिलेंगे, जहां उनसे इंसानों-जैसा व्यवहार किया जाएगा. फिर यह कहना कि देखो जी, ईसाई और मुसलमान हिंदू कौम को नुकसान पहुंचा रहे हैं, व्यर्थ होगा.’ ‘जोरदार बहस छिड़ी. अच्छी नोंक-झोंक हुई. समस्या यह थी कि अछूतों को यज्ञोपवीत धारण करने का हक है अथवा नहीं? तथा क्या उन्हें वेद-शास्त्रों का अध्ययन करने का अधिकार है? बड़े-बड़े समाज-सुधारक तमतमा गए, लेकिन लालाजी ने सबको सहमत कर दिया… वरना जरा सोचो, कितनी शर्म की बात होती. कुत्ता हमारी गोद में बैठ सकता है… लेकिन एक इंसान का हमसे स्पर्श हो जाए, तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है.’ ‘मालवीय जी (महामना कहे जाने वाले मदनमोहन मालवीय) जैसे बड़े समाज-सुधारक, अछूतों के बड़े प्रेमी और न जाने क्या-क्या पहले एक मेहतर के हाथों गले में हार डलवा लेते हैं, लेकिन कपड़ों सहित स्नान किए बिना स्वयं को अशुद्ध समझते हैं! …सबको प्यार करने वाले भगवान की पूजा करने के लिए मंदिर बना है लेकिन वहां अछूत जा घुसे तो वह मंदिर अपवित्र हो जाता है! भगवान रुष्ट हो जाता है!’ देश में मुक्तिकामना जिस तरह बढ़ रही है, उसमें…अधिक अधिकारों की मांग के लिए (अछूतों को अपनाकर) अपनी-अपनी कौमों की संख्या बढ़ाने की चिंता सबको हुई… इधर जब अछूतों ने देखा कि उनकी वजह से इनमें फसाद हो रहे हैं तथा उन्हें हर कोई अपनी-अपनी खुराक समझ रहा है तो वे अलग ही क्यों न संगठित हो जाएं? ‘उठो! अपना इतिहास देखो, तुम्हारी कुर्बानियां स्वर्णाक्षरों में लिखी हुई हैं. …इंसान की धीरे-धीरे कुछ ऐसी आदतें हो गई हैं कि वह अपने लिए तो अधिक अधिकार चाहता है, लेकिन जो उसके मातहत हैं, उन्हें वह अपनी जूती के नीचे ही दबाए रखना चाहता है… अतः संगठनबद्ध हो अपने पैरों पर खड़े होकर पूरे समाज को चुनौती दे दो… दूसरों की खुराक मत बनो.
उन्हें विश्वास था कि गुलामी का जुआ तो देशवासी एक दिन अपनी गर्दन से झटक ही देंगे, लेकिन उनको उससे कोई सुकून हासिल नहीं होगा, अगर सत्ता में इतना ही परिवर्तन हो कि वह गोरे शासकों के हाथों से फिसलकर देसी भूरे शासकों के हाथ में आ जाए और गरीबों, मजदूरों व किसानों का शोषण पूर्ववत जारी रहे. हम उलाहना देते हैं कि….अंग्रेजी शासन हमें अंग्रेजों के समान नहीं समझता. लेकिन क्या हमें यह शिकायत करने का अधिकार है?’ दूसरों के मुंह की ओर न ताको… नौकरशाही के झांसे में मत फंसो, तुम असली सर्वहारा हो… संगठनबद्ध हो जाओ…. बस गुलामी की जंजीरें कट जाएंगी. सामाजिक आंदोलन से क्रांति पैदा कर दो तथा राजनीतिक व आर्थिक क्रांति के लिए कमर कस लो…सोए हुए शेरो! उठो और बगावत खड़ी कर दो.’
ये वर्ग आजादी के बाद भी शोषण की मायावी चक्की में पिसते ही न रह जाएं, इसके लिए वे चाहते थे कि स्वतंत्र भारत प्रगतिशील व आधुनिक विचारों पर आधारित ऐसा देश बने, जिसमें सबके लिए समता व सामाजिक न्याय सुलभ हो और मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण कतई संभव न रह जाए.
शहीद-ए-आजम का साफ कहना था कि ऐसा भारत तभी संभव है, जब उसके निवासी ऐसी वर्गचेतना से संपन्न हो जाएं, जो उन्हें आपस में ही लड़ने और छीना-झपटी करने से रोके. तभी वे समझ सकेंगे कि उनके असली दुश्मन वे पूंजीपति हैं, जो उनके खिलाफ नाना हथकंडे अपनाते रहते हैं और भलाई उनके हथकंडों से बचकर रहने में ही है.