बॉलीवुड ने दर्शकों को सिनेमाघरों तक लाने का फ़ार्मूला ढूँढ लिया है?
BBC
ओटोटी, कोरोना और महँगे टिकट के दौर में बॉलीवुड आख़िर कैसे दर्शकों को थिएटर तक खींच पाएगा
पहले ओटीटी का हमला और फिर कोरोना की मार, इनकी वजह से बेदम बॉलीवुड के सामने दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींचने की जो चुनौती सामने आई है उसने सिनेमा बनाने वालों को गहरी परेशानी में डाल दिया है.
फ़िल्म मेकर्स को ये तो समझ में आ ही चुका है कि हथेली में सिमट चुकी मनोरंजन की दुनिया से दर्शकों को बाहर निकाल कर सिनेमाघरों तक पहुंचाना अब इतना आसान नहीं होगा और इसके लिए किसी 'करिश्मे' की जरूरत होगी, और वो करिश्मा होगा - लॉर्जर दैन लाइफ़ यानी बहुत भव्य फिल्में.
दरअसल, हाल में आई एसएस राजामौली की फिल्म आरआरआर ने ये साफ कर दिया है कि अब अगर दर्शकों को सिनेमाघर तक लेकर आना है तो उसके लिए इस तरह का भव्य सिनेमा बनाना होगा जिसके बारे में दर्शक ये मान लें कि उसे बड़े परदे पर ही देखने में मज़ा आएगा.
तो बड़ा बजट, बड़े स्टार, बड़ा स्केल और भारी भव्यता समय की मांग हैं.
बॉलीवुड वाले समझने लगे हैं कि 600 रुपये का टिकट लेकर थिएटर में जाने वाले को अगर भव्यता के अनुभव के साथ पूरा एंटरटेनमेंट नहीं मिलेगा तो वह ओटीटी के मायाजाल से बाहर नहीं निकलेगा.