बिहार में बेस, जीतना है देश... नेशनल मिशन पर निकले नीतीश के दिल में क्या है?
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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ताबड़तोड़ राजनीतिक दौरे कर रहे हैं. ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है, इसे लेकर सियासी चर्चा और अटकलों का दौर भी चल रहा है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दिल में क्या चल रहा है? ये शायद ही कोई जान सके लेकिन इतना तय है कि राज्य की सियासी चर्चा के केंद्र में वे हमेशा बने रहते हैं. फिलहाल, नीतीश कुमार के राजनीतिक दौरों की चर्चा बिहार ही नहीं उसके बाहर भी हो रही है. नीतीश कुमार ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की है. नीतीश कुमार बार-बार ये दोहरा भी रहे हैं कि वे प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हैं.
इन सबके बीच सियासत के जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार सियासत में सधे कदम उठाने वाले नेता है. अभी उनके मन में क्या चल रहा है, इसका अंदाजा लगाने से पहले कुछ बातें समझ लेना जरूरी है. नीतीश की सियासी मंशा समझने से पहले अंबेडकर जयंती पर दिया गया उनका बयान याद कर लीजिए. पटना में अंबेडकर जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे नीतीश कुमार ने सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए भारतीय जनता पार्टी पर जमकर हमला बोला था.
कार्यक्रम में जेडीयू कार्यकर्ताओं ने जब नीतीश कुमार के पीएम बनने को लेकर नारे लगाने लगे, तब सुशासन बाबू ने हाथ जोड़ लिए. नीतीश कुमार ने कहा था, "एगो बात हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि मेरे बारे में मत नारा लगाइए. यही बनेंगे नेता... ये सब छोड़ दीजिए. हमको तो सबको एकजुट करना है. बिलकुल अच्छे ढंग से हो जाए माहौल जिससे देश को फायदा हो. खाली मेरा नमावा लीजिएगा तो बिना मतलब का चर्चा होगा. तो मेरा नाम मत लीजिए. हम हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं सब लोगों से. भाई मेरा नाम मत लीजिए, हम घूम रहे हैं तो हमहीं बनेंगे, ऐसा मत बोलिए प्लीज." नीतीश कुमार के इस बयान के बड़े मायने हैं.
जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में बैक सपोर्ट कर हलचल लाना चाहते हैं. नीतीश सधे कदम उठाते हैं. उन्हें पता है कि देश में बहुमत वाली सरकार के विरोध में फ्रंट कभी सक्सेस नहीं रहा है. इसलिए वे सामने आकर खेलने से बच रहे हैं.
राजनीति के कछुआ हैं सुशासन बाबू!
नीतीश कुमार के बारे में जेडीयू के एक नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि देखिए नीतीश बाबू कछुए के सेल की तरह हैं. वक्त पड़ने पर अपना सिर बाहर निकालते हैं. वक्त उनके मन मुताबिक नहीं हो तो सिर को अंदर कर लेते हैं. साल 2020 के विधानसभा चुनाव को याद कीजिए. जेडीयू मात्र 43 सीटों पर सिमट गई थी. सहयोगी बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थी. नीतीश कुमार तब तक चुप होकर बैठे रहे, जब तक बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से उनके सीएम बनने की बात पर मुहर नहीं लगी. इतना ही नहीं बीजेपी को चिरौरी तक करनी पड़ी. उसके बाद वे सीएम के पद पर आसीन हुए. नीतीश कुमार कई मौकों पर खुद अपने मन की बात नहीं कहते हैं. वे पार्टी के नेताओं या फिर अन्य दलों के राजनेताओं से खुद की बात कहलवाना पसंद करते हैं.
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