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बिहार में उच्च शिक्षा के पतन पर विलाप और शिक्षकों से हिंसा पर चुप्पी एक साथ नहीं चल सकते
The Wire
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में एक शिक्षक के साथ छात्र नेताओं की बदसलूकी क्षोभ का विषय है. कोई पक्की नौकरी छोड़कर अध्यापन में आए, जहां उसे छात्रों के सामने अपमानित किया जाए और इसके लिए कोई सज़ा भी न हो, तो मान लेना चाहिए कि बिहार में प्रतिभा के मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया गया है.
अकादमिक स्वतंत्रता का मसला सिर्फ़ अशोका यूनिवर्सिटी के अध्यापकों को इस्तीफ़े के लिए बाध्य करने या केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के सवाल तक सीमित नहीं है. अपने परिसर में अध्यापकों के निर्भीक ढंग से अपना काम करने की आज़ादी के बिना कोई अध्यापन नहीं हो सकता, यह कहने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए. ‘दिनांक 26/03/2021 को तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में एमए सेमेस्टर दो की कक्षा ले रहे प्रोफेसर दिव्यानंद सर के साथ छात्र राजद कार्यकर्ताओं द्वारा की गई मारपीट भागलपुर विश्वविद्यालय के लिए एक शर्मनाक काले अध्याय के समान है. लेकिन बिहार के तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के हिंदी विभाग के युवा अध्यापक दिव्यानंद के साथ जो हिंसा की गई है, उस पर जो क्षोभ दिखना चाहिए था, उसका अभाव देखकर यह कहना फिर से ज़रूरी है. उस दिन छात्र राजद द्वारा टीएमबीयू को बंद कराने का आह्वान किया गया था. स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में एमए सेमेस्टर दो की 10:30 से 11:30 की एक कक्षा प्रोफेसर बहादुर मिश्र ले चुके थे. दूसरी कक्षा 11:30 से 12:30 में प्रोफेसर दिव्यानंद सर आए. पहले उनके छात्रों का यह वक्तव्य पढ़ लीजिए: कक्षा की शुरुआत में सर ने हमसे पूछा था कि आप लोगों को घर से आने में परेशानी तो नहीं हुई? फिर सर ने सभी से पूछा कि आप लोग कितनी दूर से विभाग आते हैं. सभी ने अपने अपने घर के बारे में बताया कि कोई सुल्तानगंज, कोई शाहकुंड, कोई अकबरनगर जैसी जगहों से आया है. सर ने कहा कि जब आप लोग इतने कष्ट से आए हैं तो हम लोग कुछ पढ़ाई कर लेते हैं. फिर सर हम लोगों को महादेवी वर्मा के बारे में बताने लगे क्योंकि उस दिन कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्मदिन था.More Related News