
बिहार: नीतीश के जातिगत वोटबैंक से ही आते हैं RCP Singh, क्या अलग सियासी राह पर टिक पाएंगे?
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बिहार की सियासी गलियों में सिर्फ एक बात की चर्चा है कि मोदी कैबिनेट से इस्तीफा देने वाले जेडीयू नेता आरसीपी सिंह का राजनीतिक भविष्य अब क्या होगा. आरसीपी सिंह को जेडीयू में फिलहाल कोई भाव नहीं मिला रहा है, वहीं बीजेपी में एंट्री के दरवाजे खुल नहीं रहे हैं. ऐसे में अगर आरसीपी सिंह अलग सियासी राह पकड़ते हैं तो क्या नीतीश कुमार का विकल्प बन पाएंगे?
मोदी सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुके आरसीपी सिंह के सियासी भविष्य को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. मंत्री पद छोड़ने और राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद पटना पहुंचे आरसीपी सिंह ने अपनी मंशा साफ कर दी है कि वो शांत नहीं बैठेंगे और अपने कर्म के पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे. उन्होंने कहा, 'मैं जमीन का आदमी हूं, संगठन का आदमी हूं और संगठन में काम करूंगा.' मतलब साफ है कि आरसीपी सिंह एक बार फिर से बिहार की पॉलिटिक्स में वापसी करने की तैयारी में हैं, लेकिन क्या नीतीश कुमार से अलग होकर जमीन पर अपना दम दिखा पाएंगे?
नौकरशाह से राजनेता बने आरसीपी सिंह कभी नीतीश कुमार के राइट हैंड माने जाते थे, लेकिन फिलहाल जेडीयू में किसी तरह की कोई सियासी अहमियत मिलती दिख नहीं रहीं. जेडीयू में उनके तमाम करीबी नेता साइड लाइन हो चुके हैं या फिर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. वहीं, सीएम नीतीश कुमार से रिश्ते ठीक रखने के चक्कर में बीजेपी आरसीपी सिंह को लेकर उत्साहित नहीं दिख रही है. ऐसे में आरसीपी के सामने बहुत ज्यादा सियासी विकल्प नहीं बचे हैं, जिसके चलते वो अब क्या कदम उठाएंगे?
दरअसल, आरसीपी सिंह को सियासत में नीतीश कुमार ही लेकर आए थे और उन्हें फर्श से अर्श तक पहुंचने का काम किया है. इसकी वजह यह थी कि आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार एक ही जिले नालंदा और एक ही जाति कुर्मी समुदाय से आते हैं. जातिगत समीकरण के चलते नीतीश ने आरसीपी को आगे बढ़ाया. 2010 में आरसीपी आईएएस से इस्तीफा दिया तो नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेजा.
कैबिनेट का हिस्सा बने और पड़ गई दरार...
साल 2016 में आरसीपी सिंह को जेडीयू ने दोबारा राज्यसभा भेजा और शरद यादव की जगह राज्यसभा में पार्टी के नेता भी मनोनीत किए गए. वहीं, नीतीश कुमार ने जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद छोड़ा तो आरसीपी सिंह को ही पार्टी की कमान सौंपी गई थी. इस तरह नीतीश के बाद जेडीयू में वो नंबर दो की हैसियत वाले नेता बन गए. नीतीश की मनमर्जी पर आरसीपी का जेडीयू में पकड़ मजबूत होती गई तो साथ सियासी भविष्य भी संवरता गया, लेकिन मोदी कैबिनेट का हिस्सा बनने के बाद रिश्ते में दरार पड़ गई. आरसीपी को तीसरी बार जेडीयू से राज्यसभा पहुंचने का मौका नहीं मिला, जिसके चलते उन्हें मोदी कैबिनेट छोड़ना पड़ा.
आरसीपी भी नीतीश कुमार की तरह कुर्मी समुदाय से आते हैं. बिहार की सियासत में भले कुर्मी समाज संख्या बल पर महज चार फीसदी हो, लेकिन सियासी तौर काफी मजबूत मानी जाती है. बिहार की राजनीति में हमेशा जाति के इर्द-गिर्द सियासी बिसाती बिछाई जाती रही है. राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी बातें करें और विकास का सपना दिखाएं, लेकिन केंद्र में जातिवाद का ही बोलबाला दिखता है. नीतीश कुमार ने जब खुद को बिहार में लॉन्च किया तो विकास के साथ जाति आधार के लिए लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) फॉर्मूले के सहारे लालू यादव के दुर्ग को भेदने में सफल हो सके थे.

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