बिहार छुट्टी विवाद: नीतीश-तेजस्वी के लिए गांधी पर भारी पड़ गए आंबेडकर, राष्ट्रपिता अब कहां जाएं?
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को एक बार फिर अपमानित होना पड़ा है. पहले आम आदमी पार्टी ने उन्हें दिल्ली और पंजाब के सरकारी कार्यालयों से हटाया अब बिहार सरकार ने भी कुछ ऐसा ही किया है. बिहार सरकार ने गांधी जयंती की छुट्टी को खत्म कर दिया है. जबकि आंबेडकर जयंती की छुट्टी को जारी रखा है. जाहिर है कि डॉक्टर आंबेडकर को महात्मा गांधी पर वरीयता दी गई है.
बिहार के सरकारी स्कूलों में छुट्टियों को लेकर सियासी बवाल मचा हुआ है. बिहार में पहली बार हिंदुओं और मुसलमानों के लिए छुट्टियों बांट दी गईं हैं. यह संभव हुआ है उर्दू और गैर उर्दू स्कूलों के लिए अलग-अलग कैंलेंडर जारी करने के चलते. दरअसल उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले 99 परसेंट छात्र मुस्लिम ही होते हैं इसलिए कहा जा रहा है कि यह फैसला समाज को बांटने वाला है. बीजेपी ने बिहार सरकार के फैसले को तुगलकी फरमान बताया है. मुस्लिम समुदाय के लिए रामनवमी, महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, तीज और वसंत पंचमी की छुट्टियों को कैंसल कर दिया गया है. इसके एवज में ईद और बकरीद की छुट्टियों को 3-3 दिन का कर दिया गया है. बिहार बीजेपी के नेताओं ने तंज कसा है कि इससे अच्छा तो यही होता कि नीतीश सरकार बिहार को इस्लामिक स्टेट ऑफ बिहार घोषत कर दे. इस बीच बिहार सरकार के इस फैसले में नीतीश कुमार की एक और तुष्टिकरण भरी चाल नजर आई है. वह है गांधी जयंती की छुट्टी को कैंसल करना और आंबेडकर जयंती की छुट्टी जारी रखना.
आम आदमी पार्टी के बाद अब बिहार सरकार ने भी महात्मा गांधी को प्रदेश निकाला करार दिया है. पहले आम आदमी पार्टी ने पंजाब और दिल्ली के सरकारी कार्यालयों से राष्ट्रपिता को हटाकर आंबेडकर को जगह दी थी अब बिहार सरकार ने गांधी जयंती की छुट्टी खत्म कर कुछ ऐसा ही संदेश दिया है. बिहार सरकार ने उर्दू स्कूलों और गैर उर्दू स्कूलों के लिए दोनों ही के लिए गांधी जयंती की छुट्टी कैंसल करने का सीधा संदेश है कि राष्ट्रपिता बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के लिए फिट नहीं बैठ रहे हैं.
गांधी जयंती ही नहीं मजदूर दिवस की छुट्टी भी खत्म कर दी गई है. हां पर आंबेडकर जयंती के दिन छुट्टी उर्दू स्कूलों और गैर उर्दू स्कूलों दोनों जगहों पर रहेगी.मतलब साफ है. इसे लेकर बिहार में फिर से सियासी घमासान मचना तय है.
फिर आया मुस्लिम तुष्टिकरण का ट्रेंड
देश में कुछ दिनों से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति खत्म हो रही थी. बीजेपी के उभार के बाद एक ट्रेंड देखने को मिल रहा था कि हर राजनीतिक दल खुद को सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर झुका दिखाने की कोशिश कर रहा था. यही कारण था समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी मुसलमानों को हाशिये पर रखना शुरू कर दिया था. अपने आपको मुसलमानों का हितैषी कहने वाले दलों ने भी मुस्लिम कैंडिडेट उतारने में कटौती कर रखी थी. पर इस बार हो रहे विधानसभा चुनावों में फिर पुराना ट्रेंड जोर पकड़ रहा है. बीजेपी विरोधी सभी पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए खुलकर हर चाल चल रही हैं. तेलंगाना में बीआरएस ने मुस्लिम कम्युनिटी के लिए अलग आईटी पार्क बनाने की घोषणा की है तो कांग्रेस ने मुस्लिम मेनिफेस्टो ही जारी कर दिया. इस बीच जैसी बिहार से खबर आ रही है कि नीतीश कुमार ने मुस्लिम समुदाय के लिए अलग छुट्टियों का कैलंडर ही जारी कर दिया है.
नीतीश कुमार के दांव पर दांव
डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि हम लगेज पॉलिसी लेकर आए हैं, जब भी हम कुछ लागू करते हैं, तो हमें सुझाव मिलते हैं, जनता की मांग थी कि दूध और सब्जी का उत्पादन करने वाले या सप्लाई करने वाले किसानों को हमारी बसों में रियायत दी जाए, हमने उनकी मांग को स्वीकार किया और दूध और सब्जी सप्लायरों के लिए टिकट हटा दिए हैं.
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