
'बिरसा मुंडा और फ़ादर हाफ़मैन दोनों साथ नहीं चल सकते', बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने क्यों कही ये बात
BBC
फ़ादर हाफ़मैन 1877 के आसपास 20 साल की अवस्था में जर्मनी से भारत आए. 1891 में पादरी बनकर वो खूंटी ज़िले के एक गांव सरवदा आ गए. आदिवासी उन्हें सीएनटी एक्ट बनवाने और लागू करवाने के लिए याद करते हैं.
"झारखंड के मुख्यमंत्री भले ही आदिवासी पहचान की राजनीति कर रहे हों, लेकिन उन्हें आदिवासियों की समस्या से कोई सरोकार नहीं है. उन्हें पहचान की राजनीति की सीमाओं से ऊपर उठना होगा. धरती आबा बिरसा मुंडा जी ने जिसको तीर के निशाने पर लिया, उसकी स्टैच्यु (प्रतिमा) बनाकर उन्होंने खूंटी में खड़ा कर दिया. हाफ़मैन की."
"इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात और क्या होगी. या तो आप धरती आबा को स्वीकार कीजिए या फिर हाफ़मैन के साथ खड़े हो जाइए. बिरसा मुंडा ने उस हाफमैन को तीर मारा था. वो बच तो निकला, लेकिन बिरसा मुंडा जी ने घोषणा कर दी कि ये शत्रुओं का संकेत या प्रतीक है. उस प्रतीक को झारखंड मे स्थापित कर, स्टैच्यु बनाकर वो क्या संदेश देना चाहते हैं? आप दो नावों पर पैर नहीं रख सकते."
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े चिंतक और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राज्यसभा सांसद प्रोफ़ेसर राकेश सिन्हा ने यह बात बीते 11 दिसंबर को रांची में कही. वे तब यहां के एक निजी विश्वविद्यालय में बीजेपी द्वारा आयोजित प्रबुद्धजन सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
अब वे रांची से वापस जा चुके हैं लेकिन फादर हाफ़मैन और बिरसा मुंडा को लेकर उनके द्वारा कही गई बातों पर यहां विवाद खड़ा हो गया है.
उनके इस भाषण पर आदिवासी बुद्धिजीवियों ने कड़ी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं और कहा है कि प्रोफ़ेसर राकेश सिन्हा इतिहास की आधी-अधूरी जानकारी लेकर बात न करें.