
बिखराव के बीज बोते हुए सद्भाव का खेल खेलते रहने में संघ को महारत हासिल है
The Wire
संघ की स्वतंत्रतापूर्व भूमिकाओं की याद दिलाते रहना पर्याप्त नहीं है- उसके उन कृत्यों की पोल खोलना भी ज़रूरी है, जो उसने तथाकथित प्राचीन हिंदू गौरव के नाम पर आज़ादी के साझा संघर्ष से अर्जित और संविधान द्वारा अंगीकृत समता, बहुलता व बंधुत्व के मूल्यों को अपने कुटिल मंसूबे से बदलने के लिए बीते 75 वर्षों में किए हैं.
यूं भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गत शनिवार को कर्नाटक के तुमकुरु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके ‘स्वातंत्र्य वीर’ विनायक दामोदर सावरकर के बारे में इतना भर ही कहा, वह भी पहली बार नहीं, कि देश के स्वतंत्र होने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अंग्रेजों की मदद किया करता था, जिसके चलते स्वतंत्रता संघर्ष में उसकी या उसके आनुषंगिक संगठनों की कोई भूमिका नहीं है और सावरकर को अंग्रेजों से वजीफा मिला करता था.
लेकिन संघ परिवार सच को बर्दाश्त न कर पाने की अपनी पुरानी आदत के अनुसार सच के इस दोहराव को भी बर्दाश्त नहीं कर पाया. मुंबई में संघ की राजनीतिक फ्रंट भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता तो राहुल द्वारा सावरकर के अपमान का बदला लेने के लिए जूता मारो आंदोलन शुरू कर उनके पोस्टरों पर जूते बरसाने पर उतर आए!
इन कार्यकर्ताओं की बेचारगी यह कि इसके बावजूद यह सच बदलने वाला नहीं कि जब देश के दूसरे स्वतंत्रता-सेनानी मदांध गोरों द्वारा उन्हें दी जा रही क्रूरतम सजाओं के बावजूद कतई विचलित नहीं थे और अपनी कार्रवाइयों को डंके की चोट पर स्वीकार रहे थे, सावरकर स्वतंत्रता संघर्ष से पल्ला झाड़कर त्राहिमाम करते हुए बुरी तरह टूट गए थे. इसके चलते उन्होंने न सिर्फ गोरों को दया याचिकाएं दीं बल्कि उनकी शर्तों पर रिहाई भी स्वीकार की थी.