बांग्लादेश बनने के 50 साल: ‘पूर्वी पाकिस्तान की हरियाली को लाल कर दिया जाएगा’ किसने और क्यों कहा था?
BBC
1971 में ढाका पर क़ब्ज़े की जंग के दौरान तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में 200 से अधिक बुद्धिजीवियों को हिरासत में लिया गया था जिनमें से अधिकतर का आज तक कुछ अता-पता नहीं है.
बांग्लादेश में हर साल 14 दिसंबर को 'शहीद बुद्धिजीवी दिवस' मनाया जाता है. लेकिन जिन बुद्धिजीवियों को इस दिन याद किया जाता है वो बुद्धिजीवी कौन थे और उनकी हत्याएं किसने कराईं?
इस बारे में बांग्ला और पाकिस्तानी इतिहासकारों के विचार अलग-अलग हैं.
बांग्ला इतिहासकारों के मुताबिक़ ये घटना 10 दिसंबर से 14 दिसबंर 1971 के बीच हुई थी जब कथित तौर पर पाकिस्तानी फ़ौज के स्वयंसेवक विंग अलबदर ने लगभग 200 बांग्ला बुद्धिजीवियों को उनके घरों से गिरफ़्तार किया.
उन्हें मीरपुर, मोहम्मदपुर, नखलपारा, राजगढ़ और अन्य दूसरी जगहों पर बने हिरासत केंद्रों में रखा गया. इनमें से अधिकतर बुद्धिजीवियों के बारे में कुछ पता नहीं चला कि वो कहां गए.
बांग्ला इतिहासकारों के मुताबिक़, इन बुद्धिजीवियों में से अधिकतर को मार कर उनकी लाशों को राएर बाज़ार के बाहर फेंक दिया गया. बताया जाता है कि इन बुद्धिजीवियों को मारने का उद्देश्य ये था कि बांग्लादेश की आज़ादी के बाद ये बुद्धिजीवी नए मुल्क के गठन और उसकी स्थिरता में कोई भूमिका न अदा कर सकें.