बढ़ते पलायन के बीच रेलवे का मेगा प्लान, हर दिन चला रहा है 7 हजार से ज्यादा ट्रेन
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रेलवे स्टेशन हो या बस स्टेशन, बड़े शहरों से मजदूर पलायन कर रहे हैं. ऐसे महासंकट के बीच रेलवे ने बड़ी तैयारी की है. भारतीय रेलवे एक बार फिर प्री-कोविड वक्त की 70 फीसदी क्षमता के हिसाब से ट्रेनें चला रहा है, ताकि मजदूरों के लिए ट्रेनों की संख्या कम ना हो पाए.
कोरोना महामारी की दूसरी लहर बेकाबू होते ही प्रवासी मजदूरों का पलायन भी शुरू हो गया है. रेलवे स्टेशन हो या बस स्टेशन, बड़े शहरों से मजदूर पलायन कर रहे हैं. ऐसे महासंकट के बीच रेलवे ने बड़ी तैयारी की है. भारतीय रेलवे एक बार फिर प्री-कोविड वक्त की 70 फीसदी क्षमता के हिसाब से ट्रेनें चला रहा है, ताकि मजदूरों के लिए ट्रेनों की संख्या कम ना हो पाए. जानकारी के मुताबिक, रेलवे जल्द ही 133 नई ट्रेनें शुरू करने पर विचार कर रहा है, जिसमें 88 समर स्पेशल और 45 त्योहार स्पेशल ट्रेनें शामिल हैं, ये अगले दो हफ्ते में शुरू हो जाएंगी. बुधवार तक के आंकड़ों के मुताबिक, रेलवे ने कुल 9622 स्पेशल ट्रेन की अनुमति दे दी है जिसमें साप्ताहिक ट्रेनें भी शामिल हैं. अभी हर रोज 7745 ट्रेनें चल रही हैं, जबकि कोविड काल से पहले ये आंकड़ा 11 हजार से अधिक था. रेलवे के द्वारा जिन इलाकों में अतिरिक्त ट्रेनें चलाई जा रही हैं, उनमें गोरखपुर, पटना, दरभंगा, वाराणसी, गुवाहाटी, प्रयागराज, रांची, लखनऊ शामिल हैं.पलायन के कारण बढ़ी ट्रेनों की डिमांड आपको बता दें कि महाराष्ट्र, गुजरात समेत कई राज्यों में पाबंदियां लागू होने के बाद बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन हो रहा है. यही कारण है कि रेलवे को अतिरिक्त ट्रेनें चलानी पड़ रही हैं. महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली से सबसे अधिक पलायन हो रहा है, यहां से बड़ी संख्या में लोग उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जा रहे हैं. इनके अलावा ओडिशा और बंगाल जाने वालों की संख्या सबसे अधिक है. पिछले साल भी जब लॉकडाउन लगा था, तब रेलवे की ओर से मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई गई थीं और लाखों लोगों को उनके शहर पहुंचाया था. लॉकडाउन की आहट के बीच अफवाह थी कि रेलवे अपनी सर्विस बंद कर सकता है, लेकिन रेलवे ने साफ किया कि ट्रेनें चलना जारी रहेगा.सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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हिंदी साहित्य के विमर्श के दौरान आने वाले संकट और चुनौतियों को समझने और जानने की कोशिश की जाती है. हिंदी साहित्य में बड़े मामले, संकट और चुनने वाली चुनौतियाँ इन विमर्शों में निकली हैं. महत्वपूर्ण विचारकों और बुद्धिजीवियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं. हिंदी साहित्यकार चन्द्रकला त्रिपाठी ने कहा कि आज का विकास संवेदन की कमी से ज्यादा नजर आ रहा है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति प्रेम के लिए वस्तुओं की तरफ झूक रहा है, लेकिन व्यक्ति के प्रति संवेदना दिखाता कम है. त्रिपाठी ने साहित्यकारों के सामने मौजूद बड़े संकट की चर्चा की. ये सभी महत्वपूर्ण छोटी-बड़ी बातों का केंद्र बनती हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं.