'बटेंगे तो कटेंगे'... योगी का ये नारा महाराष्ट्र-झारखंड और यूपी उपचुनावों में कितना बड़ा मुद्दा रहेगा?
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से लेकर यूपी के उपचुनावों तक में इस बार 'बटेंगे तो कटेंगे' का मुद्दा सबसे अधिक हावी रहने वाला है. मुंबई में लगे पोस्टर तो एनडीए सरकार ने हटवा लिया पर मुद्दा कितना बड़ा बन रहा है इसकी झलक तो मिल ही गई है. अखिलेश यादव ने भी इस नारे के खिलाफ मोर्चा खोलकर यह जता दिया है कि यह मामला अभी तूल पकड़ने वाला है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभी कुछ दिनों पहले आगरा के एक कार्यक्रम में लोगों को राष्ट्र की एकता का संदेश देते हुए कहा था- 'बटेंगे तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे, सुरक्षित रहेंगे. योगी आदित्यनाथ के बयान पर बहुत हो हल्ला मचा. पर उनके बोलने के कुछ दिनों बाद पीएम नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी यही बात अपने स्पीच में कह दी. हालांकि इस स्पीच में कोई अनोखी बात नहीं थी. क्योंकि यहां तो जोड़ने की बात हो रही थी. आम तौर पर राजनीतिज्ञ तो सिर्फ बांटने की बात करते रहे हैं. अंग्रेजों ने भारत में शासन करते हुए यहां के लोगों को एक बात तो बहुत पक्ते तरह से समझा दी थी कि अगर राज करना है तो डिवाइड एंड रूल करना होगा. आजादी के बाद अंग्रेजों की इस रणनीति पर देश की सभी पार्टियों ने चलने की कोशिश की पर सफलता कांग्रेस को ही मिली.
अब दस साल से सत्ता से बाहर कांग्रेस एक बार फिर नए सिरे से लोगों को बांटने का इंतजाम कर रही है.जाहिर है कि क्रिया के बाद प्रतिक्रिया तो होगी ही. लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने डिवाइड करने की खूब कोशिश की और काफी हद तक सफल भी रही. यही कारण रहा कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी के डिवाइड एंड रूल पर कांग्रेस का डिवाइड एंड रूल भारी पड़ा . बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी और उसे केंद्र में बैसाखियों वाली सरकार बनाने के लिए उसे मजबूर होना पड़ा. अब फिर दो राज्यों में विधानसभा चुनाव होने को हैं और कई राज्यों में उपचुनाव भी हैं. जिसमें सबसे खास यूपी के 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव हैं. मंगलवार को मुंबई की कई सड़कों पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर जिन पर बंटोगे नहीं तो -कटोगे नहीं लिखा हुआ था के नजर आने से यह मुद्दा एक बार फिर जोर पकड़ लिया है.
अखिलेश क्यों हुए हमलावर
उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और बीजेपी ताल ठोंककर मैदान में हैं.दोनों ही पार्टियों के लिए ये उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है.बल्कि यूं कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि बीजेपी के लिए झारखंड जीतना उतना जरूरी नहीं है जितना यूपी के उपचुनाव जीतना. यही कारण है कि योगी आदित्यनाथ के 'बटोंगे तो कटोगे' वाले बयान पर सियासत तेज हैं. लोकसभा चुनावों में बीजेपी के कोर वोटर्स ने पार्टी से मुख मोड़ लिया था .नतीजा ये रहा कि पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी. पार्टी को दलितों का वोट तो नहीं ही मिला. ओबीसी और सवर्णों ने भी कई जगह ठेंगा दिखा दिया.यहां तक कि कई इलाकों में राजपूतों का भी वोट नहीं मिला. लोकसभा चुनावों में सीएम योगी के समर्थकों ने इस बात बात को खूब फैलाया कि योगी की टिकट बांटने में नहीं चली. और भी कई तरीके से चुनाव अभियान में वो शामिल नहीं थे.पर विधानसभा उपचुनावों के लिए उन्हें पार्टी ने फुल पावर दे दी है. यही कारण है कि योगी अपने खास मंत्रियों की ड्यूटी उपचुनावों के लिए लगा रखी है. उम्मीद की जा रही है कि टिकट भी उन्हें ही मिलेगा जिसे योगी चाहेंगे.योगी इन उपचुनावों को तभी जीत सकेंगे जबकि लोकसभा चुनावों में बीजेपी के जो हार्डकोर समर्थक पार्टी से दूर हो गए थे वो फिर से एक बार वापस आ जाएं. यह इसी शर्त पर हो सकता है जब उन्हे यह भय दिखाया जाए कि अगर हिंदू बटेंगे तो कटेंगे.अखिलेश भी इस बात को समझ रहे हैं कि अगर योगी हिंदुओं को भय दिखाकर एकजुट कर लिए तो फिर बीजेपी को जीतने से कोई रोक नहीं सकेगा.
शायद यही कारण है कि सीएम योगी के इस बयान पर अखिलेश यादव ही नहीं उनकी सांसद पत्नी डिंपल यादव भी प्रतिक्रिया दे रही हैं.उन्होंने मैनपुरी में कहा कि उत्तर प्रदेश की जनता यह अच्छी तरह से जानती है कि इस तरह के बयान लोगों का ध्यान भटकाने के लिए दिये जाते हैं .. इसके पहले उनके पति सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि आपको कंफ्यूज नहीं होना है, क्योंकि यह नारा एक लैब में तैयार किया गया है और उन्हें किसी से बुलवाना था. इसलिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से बेहतर इस नारे को कौन बोलता, क्योंकि उनकी छवि भी वैसी ही है. अगर वह कह रहे हैं कि 'बंटेंगे तो कटेंगे'. इसलिए पीडीए परिवार भी नहीं बंटेगा. वह नारा आपके लिए लगा रहे हैं कि पीडीए परिवार के लोग बंटना मत.
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सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह रही कि खींवसर को तीन क्षेत्रों में बांटकर देखा जाता है और थली क्षेत्र को हनुमान बेनीवाल का गढ़ कहा जाता है. इसी थली क्षेत्र में कनिका बेनीवाल इस बार पीछे रह गईं और यही उनकी हार की बड़ी वजह बनी. आरएलपी से चुनाव भले ही कनिका बेनीवाल लड़ रही थीं लेकिन चेहरा हनुमान बेनीवाल ही थे.
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