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बजट 2022-23: इकोनॉमी में संतुलन बनाने वाले क़दम उठाने की ज़रूरत
BBC
कोरोना महामारी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था और आम लोगों को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के आज पेश किए जाने वाले बजट से बहुत उम्मीदें हैं. चुनावों को देखते हुए वित्त मंत्री क्या कुछ कर सकती हैं - एक आकलन.
"स्टील प्लेटों को बर्बाद मत करो, अब हम और नुक़सान झेलने की हालत में नहीं हैं," यह कहना है सतनाम सिंह मक्कड़ का. वे ये बात स्टील प्लेटों से साइकिल के छोटे पुर्ज़े बना रहे अपने कामगारों से कह रहे थे.
पंजाब के लुधियाना शहर के उनके कारखाने का उत्पादन कोरोना महामारी के समय से 50 फ़ीसदी गिर चुका है. स्टील और अन्य कच्चे माल के दाम में हुए उतार-चढ़ाव का भी उनके लाभ पर असर पड़ा है.
वे कहते हैं, ''कोरोना लॉकडाउन के दौरान मेरे कई प्रवासी कामगार घर लौट गए और उसके बाद कुछ ही लौटे हैं. चूंकि इस वक़्त मांग ज़्यादा नहीं है, इसलिए हमारा उत्पादन भी नहीं बढ़ा. हमें उम्मीद है कि इस बार के बजट में छोटे कारोबारों के लिए कुछ प्रावधान किए जाएंगे."
वैसे तो आंकड़ों में, भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर काफ़ी अच्छी दिख रही है. लेकिन मक्कड़ जैसे कारोबारियों के छोटे कारोबार और देश के कार्यबल के ज़्यादातर लोगों को काम देने वाला असंगठित क्षेत्र अभी भी बेहतर हालत में नहीं पहुंचा है.
इस वजह से भारत की मौजूदा रिकवरी को 'के आकार' का बताया जा रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि एक ओर अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र तेज़ी से बढ़ रहे हैं, वहीं कई क्षेत्रों को आगे बढ़ने के लिए जूझना पड़ रहा है. इस तरह के विकास को अच्छा नहीं माना जाता.