बगावत, सत्ता परिवर्तन और कानूनी झटके... अब ये 'अग्निपरीक्षा' बन सकती है उद्धव के लिए संजीवनी
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उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले कुछ समय में कई झटके लग चुके हैं. फिर चाहे वो सत्ता परिवर्तन रहा हो या फिर शिवसेना का हाथ से जाना. लेकिन इन सभी झटकों से एक परीक्षा उद्धव को उबार सकती है. अगर उद्धव गुट आगामी बीएमसी चुनाव में कुछ कमाल कर जाएं तो जमीन पर उनके लिए कई समीकरण फिर बदल सकते हैं.
उद्धव ठाकरे, महाराष्ट्र की राजनीति की वो शख्सियत हैं जिन्होंने शिवसेना का पहला मुख्यमंत्री होने का तमगा पाया है. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद ऐसा सियासी उलटफेर हुआ कि उद्धव ठाकरे और उनकी शिवसेना एनसीपी-कांग्रेस के साथ चली गई और महा विकास अघाडी की सरकार बनी. मुख्यमंत्री का पद उद्धव ठाकरे को दे दिया गया. लेकिन ये सफर कई नाटकीय मोड़ वाला रहा. बीजेपी के हमले लगातार होते रहे, पार्टी का एक खेमा भी कांग्रेस से हाथ मिलाने से असहज चल रहा था. एकनाथ शिंदे भी उन्हीं नेताओं में से एक थे जिन्होंने उसी असहजता को मौके में बदला और खुली बगावत कर डाली. उस बगावत ने पहले शिवसेना में दो फाड़ की और बाद में बड़े ही नाटकीय अंदाज में सत्ता परिवर्तन भी हो गया.
उद्धव को मिले बड़े झटके, चुनौतियां अनेक
उसके बाद से उद्धव ठाकरे के लिए कई मोर्चों पर चुनौतियां खड़ी हो गईं. उन्होंने अपने हाथ से सिर्फ सीएम की कुर्सी नहीं गंवाई, बल्कि जिस शिवसेना पर उनका बालासाहेब ठाकरे के बाद एकाधिकार चल रहा था, वो भी कमजोर हो गया. उस कमजोरी पर चुनाव आयोग के फैसले ने और करारी मार की जब कह दिया गया कि शिवसेना और धनुष बाण वाला चिन्ह शिंदे गुट के पास रहेगा, यानी कि शिवसेना कहलाने का हक शिंदे गुट के पास होगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी बुधवार को अपने फैसले में चुनाव आयोग के आदेश को बरकरार रख दिया है. अब ऐसे में उद्धव ठाकरे को एक सियासी झटका लगा है, तो वहीं दो मौकों पर पार्टी को लेकर कानूनी लड़ाई में भी वे पिछड़े हैं.
BMC चुनाव उद्धव के लिए बन सकता गेम चेंजर
लेकिन इस राजनीति में अभी कई और सियासी उलटफेर हो सकते हैं. कहने को एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन चुके हैं, कहने को शिवसेना भी उन्हीं के हाथ लग गई है, लेकिन उद्धव की लोकप्रियता बरकरार है. उनका भी समर्थकों का एक अच्छा बेस है जिसे अगर भुनाया जाए तो बाजी फिर पलट सकती है. वो मौका उद्धव ठाकरे को मिल भी सकता है. वो मौका मुंबई महानगरपालिका के चुनाव देने वाले हैं जो आने वाले महीनों में होंगे. बीएमसी पर शिवसेना (उद्धव गुट) का पिछले 25 साल से कब्जा है, महाराष्ट्र में कई पार्टियां आईं, कईं चली गईं, लेकिन इस बीएमसी से शिवसेना की पकड़ कभी कमजोर नहीं हुई. वैसे भी महाराष्ट्र की राजनीति में कहा जाता है कि इस आर्थिक राजधानी पर जिस भी पार्टी का कब्जा रहता है, राज्य भी वही चलाती है.
25 साल का ट्रैक रिकॉर्ड, उद्धव के लिए बूस्टर
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