
फैब इंडिया का विज्ञापन वापस लेना देश के उद्योग जगत की प्राथमिकताएं दिखाता है
The Wire
मिश्रित संस्कृति, भाषा की यात्रा आदि की शिक्षा का अब कोई लाभ नहीं है. उर्दू या मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रचार किसी अज्ञानवश नहीं किया जा रहा. यह उनके रोज़ाना अपमान का ही एक हिस्सा है. टाटा के बाद फैब इंडिया ने भी इसी अपमान को शह दी है.
फैब इंडिया ने जश्ने-रिवाज वाला अपना विज्ञापन वापस लेकर करोड़ों उर्दू भाषियों, उर्दू प्रेमियों और मुसलमान, ईसाई, यहूदी धर्मावलंबियों का दिल दुखाया है, अगर अपमान न भी किया हो तो, बात इस पर भी करने की ज़रूरत है. ऐसा उसने क्यों किया, इस पर भी. और क्यों ऐसा करने के लिए उसका बहिष्कार नहीं करेंगे, इस पर सोचने की भी. यह टिप्पणी इन्हीं प्रश्नों पर केंद्रित है.
‘जश्ने रिवाज़!’ इन शब्दों में दीवाली की बधाई देते हुए अपने कपड़े, गहने वगैरह बेचने के लिए फैब इंडिया ने एक विज्ञापन जारी किया. रोमन लिपि में उर्दू के शब्द. देखने में सुंदर लगेंगे, कानों को भी भाएंगे. कुछ गाहक इस वजह से शायद आ जाएं दीवाली की खरीद को, ऐसा सोचा होगा कंपनी ने.
रिवाज़ देखते उर्दू जानने वालों ने फैब इंडिया को झिड़की दी नुक्ते के गैर ज़रूरी इस्तेमाल के लिए. लिखा रोमन में गया था. जिसने भी विज्ञापन बनाया होगा वह ज़रूर उर्दू नहीं जानता होगा. लेकिन उर्दू के प्रति सद्भाव अवश्य होगा उसके मन में. भारत में इतना काफी माना जाता है.
सद्भाव ज्ञान को अनावश्यक बना देता है. इसी सद्भाववश लोग मुहर्रम मुबारक भी कह डालते हैं. मौका क्या है, मातम का या खुशी का यह तब पता हो जब आप इस धर्म के बारे में जानकारी का प्रयास करें. अभी हम धर्म नहीं भाषा पर बात कर रहे हैं.