प्रेस की आज़ादी नियंत्रित करने वाले 37 राष्ट्राध्यक्षों में नरेंद्र मोदी का नाम शामिल: रिपोर्ट
The Wire
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने प्रेस स्वतंत्रता को नियंत्रित करने वाले 37 राष्ट्राध्यक्षों या सरकार के प्रमुखों की सूची जारी की है, जिसमें उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन, पाकिस्तान के इमरान ख़ान के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम शामिल है. रिपोर्ट के अनुसार ये सभी वे हैं जो 'सेंसरशिप तंत्र बनाकर प्रेस की आज़ादी को रौंदते हैं, पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डालते हैं या उनके ख़िलाफ़ हिंसा भड़काते हैं.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन 37 राष्ट्राध्यक्षों या सरकार के प्रमुखों की सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्हें वैश्विक निकाय रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने प्रेस स्वतंत्रता को नियंत्रण करने वालों (प्रीडेटर्स) के रूप में पहचाना है. 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस पश्चिमी राज्य को समाचार और सूचना नियंत्रण विधियों के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया और उसका इस्तेमाल उन्होंने 2014 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने के बाद किया. एक नियम के रूप में कोई भी पत्रकार या मीडिया आउटलेट जो प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय-लोकलुभावन विचारधारा पर सवाल उठाते हैं, उन्हें जल्दी से ‘सिकुलर’ (बीमार और धर्मनिरपेक्ष शब्द का एक मिश्रण) के रूप में ब्रांडेड किया जाता है. मोदी के (इस सूची में) प्रवेश से पता चलता है कि कैसे विशाल मीडिया साम्राज्य के मालिक अरबपति व्यवसायियों के साथ उनके घनिष्ठ संबंध ने उनके बेहद विभाजनकारी और अपमानजनक भाषणों के निरंतर कवरेज के माध्यम से उनकी राष्ट्रवादी-लोकलुभावन (nationalist-populist) विचारधारा को फैलाने में मदद की है. उनका प्रमुख हथियार मुख्यधारा के मीडिया को भाषणों और सूचनाओं से भर देना है, जो उनकी राष्ट्रीय-लोकलुभावन विचारधारा को वैधता प्रदान करते हैं. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने अरबपति व्यवसायियों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए हैं, जिनके पास विशाल मीडिया साम्राज्य हैं. इसके साथ ही ऐसे उन्हें भक्तों द्वारा निशाना बनाया जाता है, जो उन पर मुकदमे दायर करते हैं, मुख्यधारा के मीडिया में उन्हें बदनाम करते हैं और उनके खिलाफ ऑनलाइन हमलों का समन्वय करते हैं. आरएसएफ के 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 142वें स्थान पर है. आरएसएफ दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ है जो मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा में विशेषज्ञता रखता है, जिसे सूचित रहने और दूसरों को सूचित करने का एक बुनियादी मानव अधिकार माना जाता है. यह कपटी रणनीति दो तरह से काम करती है. एक ओर प्रमुख मीडिया आउटलेट्स के मालिकों के साथ अपने साफ तौर पर संबंध बनाने से उनके पत्रकार जानते हैं कि अगर वे सरकार की आलोचना करते हैं तो उन्हें बर्खास्तगी का जोखिम होता है. मोदी पाकिस्तान के इमरान खान, सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, म्यांमार के सैन्य प्रमुख मिन आंग हलिंग और उत्तर कोरिया के किम जोंग-उन के साथ-साथ 32 अन्य लोगों में शामिल हो गए हैं, जिनके बारे में कहा गया है कि वे ‘सेंसरशिप तंत्र बनाकर प्रेस की स्वतंत्रता को रौंदते हैं, पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डालते हैं या उनके खिलाफ हिंसा भड़काते हैं. उनके हाथों पर खून नहीं है क्योंकि उन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पत्रकारों को हत्या की ओर ढकेला है.’ दूसरी ओर, अक्सर दुष्प्रचार फैलाने वाले उनके अत्यंत विभाजनकारी और अपमानजनक भाषणों का प्रमुख कवरेज मीडिया को रिकॉर्ड दर्शकों के स्तर को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है.More Related News