प्रभात गुप्ता हत्याकांड केस: SC में टली केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी पर होने वाली सुनवाई
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8 जुलाई 2000 को लखीमपुर के तिकुनिया में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता प्रभात गुप्ता की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या की गई थी. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी समेत चार लोगों सुभाष मामा, शशि भूषण पिंकी ,राकेश डालू हत्या के आरोपी बनाए गए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अजय मिश्रा समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.
प्रभात गुप्ता हत्याकांड मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा बरी किये जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई टल गई है. दो हफ्ते के लिए सुनवाई को टाला गाया है. 8 जुलाई 2000 को लखीमपुर के तिकुनिया में लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र नेता प्रभात गुप्ता की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या की गई थी. इस मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी समेत चार लोगों सुभाष मामा, शशि भूषण पिंकी ,राकेश डालू हत्या के आरोपी बनाए गए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अजय मिश्रा समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था.
क्या था प्रभात गुप्ता मर्डर केस?
प्रभात गुप्ता के दिवंगत पिता संतोष गुप्ता की तरफ से दर्ज कराई गई एफआईआर में आरोप लगाया गया कि उनके बेटे प्रभात गुप्ता की 8 जुलाई 2000 को लखीमपुर के तिकुनिया थाना क्षेत्र के बनवीरपुर गांव में दिन में लगभग 3.30 बजे गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मर्डर केस में पिता संतोष गुप्ता ने मौजूदा समय में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के साथ शशि भूषण, राकेश डालू और सुभाष मामा को हत्या में नामजद आरोपी बनाया.
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आरोप लगाया गया कि प्रभात गुप्ता को दिनदहाड़े बीच रास्ते में पहली गोली अजय मिश्रा ने उसकी कनपटी पर मारी और दूसरी गोली सुभाष मामा ने प्रभात के सीने में मारी थी, जिसके बाद प्रभात गुप्ता की मौके पर ही मौत हो गई. लखीमपुर के तिकुनिया थाने में क्राइम नंबर 41/ 2000 धारा 302 और 34 आईपीसी में केस दर्ज हुआ. अभियोजन और पीड़ित परिवार की तरफ से दायर की गई हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका पर तीन बार से हाई कोर्ट की विभिन्न बेंच ने आर्डर रिजर्व किया लेकिन फैसला नहीं आया.
एफआईआर दर्ज होने के कुछ ही दिनों बाद केस बिना वादी की जानकारी के सीबीसीआईडी ट्रांसफर कर दिया गया. प्रभात गुप्ता के परिवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता से गुहार लगाई और 24 अक्टूबर 2000 को तत्कालीन सचिव मुख्यमंत्री आलोक रंजन ने केस की जांच सीबीसीआईडी से लेकर फिर लखीमपुर पुलिस को दे दी.
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