पांच साल तक सोए हुए विपक्ष ने नहीं, किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को जगाया है
The Wire
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां किसान आंदोलन का असर दिखा था, वहां के 19 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा सिर्फ़ छह सीटें हासिल कर पाई है. अगर इस चुनावी नतीजे से किसी एक निष्कर्ष पर पहुंचा जाए तो वह यह है कि जनता के मुद्दों पर चला सच्चा जन आंदोलन ही ध्रुवीकरण के रुझानों को पलट सकता है और आगे चलकर यही भाजपा
दिल्ली की सरहदों पर साल-भर चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन का समापन 11 दिसंबर, 2021 को हुआ. इस आंदोलन में खुद को झोंक देने वाले किसी भी आदमी को उत्तर प्रदेश चुनाव का परिणाम निराशाजनक लग सकता है.
भाजपा समर्थक इस मौके पर उस आंदोलन के प्रभाव को कम करके आंकने की कोशिश में जोर-शोर से लगे हुए हैं. उनका दावा है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में उनकी पार्टी के प्रदर्शन पर इसका कोई असर नहीं रहा. हालांकि, इस दावे की हकीकत को परखना जरूरी है.
किसान आंदोलन मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में केंद्रित था और गन्ना बेल्ट के चार जाट बहुल जिलों- मुज़फ़्फ़रनगर, शामली, बागपत और कुछ हद तक मेरठ में इसे समर्थन मिला.
इन जिलों में 19 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें से भाजपा सिर्फ 6 सीटें हासिल कर पाई है. इन छह सीटों में भी तीन विधानसभा क्षेत्र (मेरठ दक्षिण, मेरठ कैंट और मुज़फ़्फ़रनगर) कमोबेश शहरी क्षेत्र है, जहां किसान आंदोलन का असर बहुत कम था.