पश्चिमी यूपी: कितनी सच है 'जिसके जाट, उसके ठाठ' की कहावत? समझें पूरा सियासी गणित
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कहा जाता है 'जिसके जाट, उसके ठाठ', ये सिर्फ एक कहावत नहीं बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इतिहास का सच है. 1960 के दशक में अगर चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश से कांग्रेस की राजनीति को समेटा तो उसके पीछे उनका जाट राजनीति के मुखिया के तौर पर उभरना था. दो फॉर्मूले तब चर्चा में थे- अजगर मजगर. फिर जब मुलायम सिंह राजनीति में मजबूत हुए तो इन समीरकणों से अहीर यानि की यादव अलग रास्ते पर चल निकले और फिर राजपूत भी निकल आए. चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजीत चौधरी ने काफी हद तक मुस्लिम और जाट समीकरण को साधे रखा था, 2017 में बीजेपी के चुनाव जीतने के पलहे यही समीकरण चलते थे.समझें पूरा सियासी गणित.
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि आज देश में डिफेंस और रेलवे ये दो ऐसे सेक्टर हैं जिनके राजनीतिकरण से बचते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है. ये देश की ताकत हैं. रेलवे का पूरा फोकस गरीब और मिडल क्लास परिवारों पर. एसी और नॉन एसी कोच के रेशियो को मेंटेन किया गया. जब कई सदस्यों की ओर से जनरल कोच की डिमांड आई तो 12 कोच जनरल कोच बनाए जा रहे हैं. हर ट्रेन में जनरल कोच ज्यादा हो, इस पर काम किया जा रहा है.