
पंडित शिवकुमार शर्माः जिन्होंने घाटी के वाद्य को घर-घर पहुँचाया
BBC
पंडित शिवकुमार शर्मा ने 5 साल की उम्र में पहले गायन सीखा, फिर तबला. अपने पिता के कहने पर उन्होंने संतूर की तरफ रुख़ किया.
करीब 12 साल पुरानी बात है. पंडित शिवकुमार शर्मा का दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम था. अच्छी तादाद में छात्र उन्हें सुनने आए थे.
कई उनकी विरासत को महसूस करना चाहते थे तो कई उस अखरोट की लकड़ी की छड़ों को देखने आए थे जिसे संतूर के तारों पर रखते ही वातावरण में नया आवर्तन भर जाता है.
चूंकि उनका वास्ता जम्मू और कश्मीर से रहा, इसलिए उन्हें डोगरी में बात करना पसंद था.
कार्यक्रम से पहले जब पंडित शिवकुमार शर्मा संतूर के बारे में बता रहे थे तो जम्मू की एक छात्रा ने डोगरी में पूछा कि इस लकड़ी को क्या कहते हैं?
पंडित शिवकुमार शर्मा हल्का सा मुस्कुराए और उन छोटी-छोटी लकड़ियों को उठाते हुए पहले डोगरी में बोले फिर हिंदी में समझाया कि इसे 'कलम' कहते हैं जिसे अखरोट की लकड़ी से बनाया जाता है.