पंजाब में मिले 282 नरकंकालों की पहचान के लिए ब्रिटिश हाई कमीशन से लिस्ट मांगेंगे शोधकर्ता
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पंजाब के अजनाला कस्बे के एक पुराने कुएं से 2014 में 282 नर कंकाल मिले थे. डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस से ये राज खुला है कि ये कंकाल 165 साल पहले ब्रिटिश क्रूरता का शिकार हुए यूपी, बिहार, बंगाल और ओडिशा के रहने वाले 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिकों के हैं.
पंजाब के अजनाला कस्बे में एक पुराने कुएं से साल 2014 में 282 नर कंकालों के अवशेष निकाले गए थे. अब इसकी गुत्थी DNA और आइसोटोप एनालिसिस के माध्यम से सुलझ गई है. ये नर कंकाल पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत करने वाले 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक थे जिन्हें अंग्रेज अधिकारियों ने न केवल बेरहमी से तड़पाकर मार डाला, बल्कि उनकी मौत का सबूत तक मिटा डाला था.
आज 282 नर कंकालों ने 165 साल बाद अपनी पहचान खुद बता दी है. दरअसल, 2014 की शुरुआत में पंजाब के अजनाला कस्बे के एक पुराने कुएं से 282 नर कंकालों के अवशेष निकले थे. इसे लेकर कुछ इतिहासकारों ने कहा था कि ये कंकाल भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान दंगों में मारे गए लोगों के हैं. एक धारणा ये भी थी कि ये कंकाल उन भारतीय सैनिकों के हैं जिनकी हत्या 1857 स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों ने कर दी थी.
वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर गहन बहस चल रही थी. वास्तविकता पता करने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपोलाजिस्ट डॉ जेएस सेहरावत ने इन कंकालों का डीएनए और आइसोटोप अध्ययन किया. इस अध्ययन में सीसीएमबी हैदराबाद, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ और काशी हिंदू विश्विद्यालय के वैज्ञानिकों का भी सहयोग लिया गया. वैज्ञानिको की दो अलग-अलग टीम ने डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस किया जिसमें निष्कर्ष निकला की ये कंकाल गंगा घाटी क्षेत्र के रहने वाले लोगों के हैं.
इस अध्ययन में अहम भूमिका निभाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के जीन वैज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि 1 अगस्त 1857 को पंजाब के अजनाला में एक घटना हुई थी लेकिन इसकी सभी जानकारियों को मिटा दिया गया. इस घटना में मियां मीर जो लाहौर का कैंटोनमेंट एरिया है, वहां हिंदू-मुस्लिम सैनिक तैनात थे. 1857 का जब स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ तब अंग्रेजों ने डर के चलते इनके हथियार छीन लिए थे. वहां भी चिंगारी भड़की और सैनिकों ने अंग्रेजों को मारकर 26वीं मूल बंगाल इन्फैंट्री बटालियन के सैनिक वापस जाने के निकल गए.
प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे बताते हैं कि जैसे ही इन सैनिकों ने रावी नदी पार किया, अंग्रेज फौज को ये जानकारी मिल गई और गोलीबारी हुई जिसमें 288 सैनिक जिंदा पकड़े गए. बाकी सैनिक मारे जा चुके थे. पकड़े गए सैनिकों को अंग्रेजों ने एक छोटी जगह ले जाकर बंद कर दिया और अगले दिन से 10-10 का ग्रुप बनाकर गोली मारने का क्रम शुरू किया. इस दौरान इतनी क्रूरता हुई कि जहां इनको बंद किया गया था, वहीं 44 स्वतंत्रता सेनानियों की मौत सांस रुकने की वजह से हो गई और बचे हुए लोगों को अंग्रेजों ने गोली मार दी.
पंजाब सरकार ने शोधकर्ताओं को सौंपे थे कंकाल
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