‘पंजाब: जिनां राहां दी मैं सार न जाणां’ कविता या कहानी नहीं, अतीत और आज का जीवंत दस्तावेज़ है
The Wire
पुस्तक समीक्षा: अमनदीप संधू की किताब 'पंजाब: जर्नी थ्रू फॉल्ट लाइंस' के पंजाबी अनुवाद 'पंजाब: जिनां राहां दी मैं सार न जाणां' में वो पंजाब नहीं दिखता है जो फिल्मों, गीतों में दिखाया जाता रहा है. यहां इस सूबे की तल्ख़, खुरदरी और ज़मीनी हक़ीक़त से सामना होता है.
इब्नबतूता ने अपने सफ़रनामे में पंजाब की जरख़ेज़ धरती को ‘पंज-आब’ यानी पांच दरियाओं की धरती कहा. इसी जमीं की कथा, व्यथा की गाथा है ‘पंजाब: जिनां राहां दी मैं सार न जाणां.’ लेखक अमनदीप संधू की मूलरूप से अंग्रेजी में आई ‘पंजाब: जर्नी थ्रू फॉल्ट लाइंस’ का पंजाबी अनुवाद यादविंदर सिंह और मंगत राम ने किया है और अमृतसर के सिंह ब्रदर्स ने प्रकाशित किया है.
कई किताबें ऐसी होती हैं जो ख़त्म होकर भी ख़त्म नहीं होतीं, आप खुद भी कुछ न कुछ जोड़ते चलते हो. आप लेखक से एकमेक होकर सोचते हो इस हालात में लेखक क्या कहते-सोचते. पिछले कई दिनों से पंजाब मेरे साथ है, मैं जी रही हूं उसे. ये कविता, कहानी या उपन्यास नहीं ये है अतीत और वर्तमान में झूलता जीवंत दस्तावेज़, जो पंजाब के भविष्य की चिंता में अपने व्यापक अनुभव, अध्ययन और तटस्थ दृष्टि से एक नया मानवीय परिप्रेक्ष्य मुहैया कराता है.
इसे पढ़कर सहज ही अनुमान हो जाता है पंजाब की तहों को खोलने, उलझी गुत्थियों को सुलझाने में लेखक अमनदीप संधू ने कितनी मेहनत की होगी. लेखक सही कहते हैं पंजाब इतना विशाल और गुंझलदार है कि किसी की पकड़ में नहीं आ सकता. लेखक ने लिखने से पहले कई साल पंजाब में बिताए. आंकड़ों को इकट्ठा करना, इतिहास को खोजना, ज़मीनी हक़ीक़त जानने के लिए लोगों से मिलना, भटकना आसान तो नहीं ही था इसलिए आप इसे सरसरी तौर पर पलटते, तो नहीं ही पढ़ सकते.
किताब क्या है मानों लोगों की परेशानियों, तकलीफ़ों, संघर्षों, नाउम्मीदों, मुंह बाये खड़े अनसुलझे जटिल प्रश्नों, मजबूरियों, हताशाओं का प्रमाणिक लेखा-जोखा है. ये न केवल पंजाब के इतिहास और वर्तमान की यात्रा बल्कि अपने वक़्त का राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक दस्तावेज़ भी है.