न कोई ठोस प्लान, न जमीन पर दिख रहा कोई असर... हर साल कैसे गैस चैंबर बन जाती है दिल्ली?
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राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण से हालात खराब हैं. शुक्रवार को दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक बढ़कर 460 हो गया है. शहर के कई हिस्सों में AQI 500 के करीब पहुंच गया है. राष्ट्रीय राजधानी में GRAP-III नियम लागू किया गया है. बिगड़ती वायु गुणवत्ता के कारण अधिकारियों ने उपाय करना शुरू कर दिया है. दिल्ली सरकार आज दोपहर 12 बजे एक बैठक करेगी.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हर साल की तरह इस बार भी वायु प्रदूषण से 'बीमार' हो रही है. पिछले दो हफ्ते से वायु प्रदूषण देखने को मिल रहा है. तीन दिन से हालात पूरी तरह बिगड़ गए हैं. आसमान में धुंध और धुंआ है. लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. डॉक्टर्स इसे गंभीर खतरा बता रहे हैं. बीमार लोगों की संख्या बढ़ रही है. अस्पताल में भीड़ लग रही है. दिल्ली सरकार यही दावा कर रही है कि वो वायु प्रदूषण से निपटने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है. हालांकि, अब तक तो ना कोई ठोस प्लान सामने आया है और ना जमीनी स्तर पर इसका असर देखने को मिल रहा है.
बात 8 साल पहले की है. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में दिल्ली को गैस चैंबर के तौर पर नया नाम दिया था. साल 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था, राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का वर्तमान स्तर 'चिंताजनक' स्थिति तक पहुंच गया है. यह 'गैस चैंबर में रहने' जैसा है. 4 साल पहले 2019 में दिल्ली में प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा का दर्द छलका था. उन्होंने प्रदूषण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था, दिल्ली अब रहने लायक नहीं रही. शुरू में दिल्ली मुझे आकर्षित करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है. यह शहर रहने लायक नहीं बचा है. रिटायरमेंट के बाद दिल्ली में नहीं रहूंगा. तब से लेकर सरकार लगातार वायु प्रदूषण को खत्म करने का दम भरती आई है. लेकिन, जमीन पर इसका असर कितना रहा, ये हालात बयां करते हैं.
पहले भी सख्त टिप्पणी कर चुका है सुप्रीम कोर्ट
ऐसा नहीं है कि जस्टिस मिश्रा ने ही दिल्ली में प्रदूषण को लेकर चिंता और नाराजगी जताई. उससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट सख्त टिप्पणी कर चुका है. 6 अक्टूबर 2015 को तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एचएल दत्तू ने कहा था, सांस लेना जहर हो गया है. मेरा पोता भी मास्क पहनता है. 17 जुलाई 2018 को जस्टिस लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा था, प्रदूषण से 60 हजार लोगों की जान चली गई. आखिर आप लोग कर क्या रहे हैं? उसके बाद 29 अक्टूबर 2018 जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा था कि गरीब लोग साइकिल-रिक्शा पर चलते हैं. ऐसे लोगों को आजीविका कमाने के लिए काम करना है. प्रदूषण में काम करके खुद को मार डालो?
सुप्रीम कोर्ट ने चार दिन पहले फिर जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट में इस साल भी दिल्ली में वायु प्रदूषण का मामला पहुंचा है. SC ने 4 दिन (31 अक्टूबर) पहले ही दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकारों को वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के संबंध में निर्देश दिए और एक हफ्ते के अंदर उपायों के बारे में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा, संबंधित राज्यों को एक हलफनामा दायर करना चाहिए जिसमें बताया जाए कि उन्होंने हालात से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं. मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर हो होगी. बेंच का कहना था कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण फसल जलाना है. कोर्ट ने पहले दिल्ली और उसके आसपास वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) से रिपोर्ट मांगी थी.
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