नौ साल पहले हुआ वो समझौता, जिसके बदले भारत ने दोगुनी से ज्यादा जमीन सौंप दी बांग्लादेश को, कांग्रेस हमलावर
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भाजपा के कच्चातिवु द्वीप मामला उठाने पर कांग्रेस ने पलटवार करते हुए लैंड पैक्ट का हवाला दे दिया. उसका आरोप है कि साल 2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच एक करार हुआ. इसमें नई दिल्ली ने 111 जगहें ढाका को दे दीं, जबकि बदले में केवल 51 जमीनें मिल सकीं. हजारों नागरिकों का लेनदेन भी तब हुआ था.
कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारत में सियासी घमासान जारी है. बीजेपी नेता द्वीप को वापस लेने की बात उठाते हुए कह रहे हैं कि साल 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने द्वीप श्रीलंका को दान में दे दिया था. अब यही द्वीप तमिलनाडु वापस चाहता है. ये तो हुआ एक हिस्सा. आरोपों में घिरी कांग्रेस ने भी भाजपा सरकार पर नया आरोप मढ़ दिया. उसका कहना है कि नौ साल पहले हुए लैंड करार के दौरान बीजेपी सरकार ने बांग्लादेश को इससे कहीं ज्यादा जगहें दे डालीं. जानिए, क्या है ये लैंड एग्रीमेंट, और कितनी सच्चाई है आरोपों में.
क्यों आई समझौते की नौबत
सबसे पहले भारत और बांग्लादेश के बीच का सीमा विवाद समझते हैं ताकि करार तक जाने में आसानी हो. साल 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने में भारत का बड़ा हाथ था. लेकिन इसके साथ दोनों देशों के बीच बॉर्डर को लेकर विवाद भी गहराने लगा. असल में भारत से बंटकर ही पाकिस्तान और फिर उससे बांग्लादेश निकला. बंटवारे के समय तकनीकी स्थितियों के चलते सीधी-सादी लकीर खींचकर पार्टिशन नहीं हो सका. कई हिस्से थे, जो दोनों देशों के बीच ऐसे पड़ते थे कि कोई भी उनपर पूरा-पूरा दावा नहीं कर पा रहा था. ये मामले लंबित की श्रेणी में आ गए, और दशकों तक चलते रहे.
सत्तर में हुआ जमीन पर करार
साल 1974 में कांग्रेस सरकार के दौरान लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट (LBA) हुआ. ये करार ऐसे ही पेंडिंग पड़े मामलों को निपटाने के लिए था. लेकिन एग्रीमेंट सदन में पारित हुए बगैर पड़ा रहा. इसमें 160 एनक्लेव्स की बात थी, जो एक-दूसरे को दिए जाने थे. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश ने इस एग्रीमेंट को कन्फर्म भी कर दिया, जबकि भारत चुप रहा क्योंकि इसपर आधिकारिक सहमति का मतलब अपनी जमीनों का बंटवारा था.
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