
नेपाल में सत्ता परिवर्तन: क्या गलत दिशा में खड़ी रही भारत की कूटनीति?
The Quint
Nepal INDIA:नेपाल में सत्ता परिवर्तन: क्या गलत दिशा में खड़ी रही भारत की कूटनीति? केपी ओली बनाम शेर बहादुर देउबा और भारतीय नीति did India Nepal policy failed again? Sher Bahadur Deuba Vs KP oli
नेपाली कांग्रेस (Nepali Congress) के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) ने 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले के बाद नेपाल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.निवर्तमान पीएम केपी शर्मा ओली ने 21 मई को सदन भंग करने की सिफारिश की. राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने देउबा को पीएम के रूप में नियुक्त करने से इनकार कर दिया. इसपर अपना फैसला देते हुए, संवैधानिक पीठ ने संसद की बहाली और देउबा की नियुक्ति का आदेश दिा. कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के अनुसार नए नियुक्ति का आदेश दिया.इससे ओली का पीएम के तौर पर साढ़े तीन साल का लंबा कार्यकाल खत्म हो गया.कोर्ट ने दिया ओली के 'विवादित एग्जिट' का आदेश !नेपाल के हालिया राजनीतिक इतिहास में सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जाने वाले ओली का कार्यकाल विवादों और पार्टी की अंदरूनी कलह से भरा रहा. हालांकि, उन्होंने दो-तिहाई बहुमत वाली सरकार के साथ शुरुआत की, लेकिन प्रचंड और माधव कुमार नेपाल गुट के साथ अनबन की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी. उनके कार्यकाल के अंतिम चरण में जेएसपी (जनता समाजवादी पार्टी) का महंत ठाकू धड़ा उनकी सरकार में शामिल हुआ था.ADVERTISEMENTमाना जाता है कि मधेसी नेताओं का भारत के साथ जुड़ाव को देखते हुए भारत ने इस गठबंधन को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.सिंह दरबार (प्रधानमंत्री का कार्यालय) छोड़ने से पहले, ओली ने सुप्रीम कोर्ट और अपनी पार्टी सीपीएन-यूएमएल के माधव नेपाल गुट पर निशाना साधा. साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक नया पीएम नियुक्त करने का राजनीतिक निर्णय लिया, जो न्यायपालिका के दायरे से बाहर है. साथ ही अपनी पार्टी में असंतुष्ट नेताओं और सरकार को गिराने की साजिश रचने वालों को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने 13 जुलाई को टेलीविजन पर राष्ट्र के नाम संबोधन में अगला चुनाव कराने की देउबा की क्षमता पर भी संदेह जताया.लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने वास्तव में नेपाल में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बचा लिया और अगला चुनाव कराने का रास्ता भी साफ हो गया है. दो बार सदन को भंग करने के लिए ओली के साथ मिलीभगत करने वाले राष्ट्रपति भंडारी की भूमिका भी आलोचनाओं के घेरे में आ गई है.सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दि...More Related News