नीमका: इक्कीसवीं सदी में उत्तर भारत के गांवों के समाजशास्त्र का एक नमूना
The Wire
आंबेडकर गांवों को भारतीय गणतंत्र की 'इकाई' मानने से इनकार करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार गांव में सिर्फ एक समान ग्रामीण नहीं रहते बल्कि 'अछूतों' का 'छूतों' से विभाजन साफ दिखाई देता है. ग्रेटर नोएडा में भारत सरकार द्वारा 'आदर्श गांव' घोषित नीमका में 18 अप्रैल को आंबेडकर की प्रतिमा तोड़े जाने की घटना के बाद दलित समुदाय पर लगे आरोपों में यही विभाजन स्पष्ट नज़र आता है.
उत्तर भारत में जाति उन्मूलन के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले डॉ. बीआर आंबेडकर की मूर्तियों को तोड़े जाने की रवायत आम रही है, लेकिन यदि ऐसी ही कोई घटना राजधानी दिल्ली से सटे किसी गांव में आंबेडकर जयंती के आस-पास हो जाए तो राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा इस घटना का संज्ञान लिया जाना स्वाभाविक है. बीते 18 अप्रैल 2023 की रात को ऐसी ही एक घटना गौतम बुद्ध नगर के जेवर ब्लॉक के गांव नीमका में घटित हुई, जहां कुछ अज्ञात व्यक्तियों ने एक आंबेडकर की मूर्ति को क्षतिग्रस्त कर दिया.
चूंकि गांव के जाटव समुदाय ने मात्र चार दिन पूर्व अपने पूजनीय बाबा साहब आंबेडकर का जन्मदिन धूमधाम से बनाया था इसलिए उनकी मूर्ति के साथ छेड़छाड़ दलित समुदाय के लिए क्षोभ का विषय था. रोषपूर्ण वातावरण में किसी भी प्रकार के दंगा-फसाद की स्थिति को बनने से रोकने के लिए पुलिस प्रशासन ने तत्काल भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 153ए, 295ए और 427 के तहत अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की और क्षत-विक्षत आंबेडकर की मूर्ति को हटाकर ठीक उसी जगह नई मूर्ति को स्थापित करवाई.
जिस गांव नीमका में यह घटना हुई, वह वर्ष 2015 से 2017 तक प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना के तहत एक ‘आदर्श गांव’ रह चुका है. भारतीय गणतंत्र, जहां ‘गांव’ को सभ्यता की मूल इकाई माना गया था वहां इक्कीसवीं सदी में स्वयं भारत सरकार द्वारा ‘आदर्श गांव’ घोषित किए जाने के कारण ग्राम नीमका संभवतः इस बात का एक सटीक नमूना है कि ग्रामीण जीवन में बहुसंख्यक होने के बावजूद दलितों की वास्तविक स्थिति क्या है.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपने पूरे राजनीतिक सफर में अलग-अलग समय पर भारतीय गांवों की महत्ता को तीन प्रकार से रेखांकित करते हैं. अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में जब वे दक्षिण अफ्रीका में कुछ शोषित भारतीयों के संपर्क में आते हैं तो इन भारतीय सह- नागरिकों को ब्रिटिशोंं के समान मताधिकार दिलाने के लिए गांधी भारत की जाति संचालित ग्राम व्यवस्था को पश्चिमी गणतांत्रिक पद्धति के समतुल्य होने का हवाला देते हैं और इस आधार पर मांग करते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों को ब्रिटिशोंं के समान वोट देने का अधिकार मिलना चाहिए क्योंकि परंपरागत रूप से प्रवासी भारतीय भी ब्रिटिशों की भांति एक स्वघोषित लोकतांत्रिक समाज से आते है.