
ना रोजी की चिंता, न दुनिया की टेंशन... फिर क्यों बढ़ रहा बच्चों का सुसाइड रेट? एक्सपर्ट्स से जानिए
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Student Suicide Issue: एक स्टडी से पता चला है कि भारत में आत्महत्या की दर 15-29 वर्ष आयु वर्ग (प्रति 100,000 जनसंख्या पर 38) में सबसे ज्यादा थी, इसके बाद 30-44 वर्ष समूह (प्रति 100,000 जनसंख्या पर 34) थी. 2022 में भारत में 13,000 से अधिक स्टूडेंट्स सुसाइड किया है. आत्महत्या से होने वाली सभी मौतों में 7.6% छात्र थे.
Student Suicide Issue:आत्महत्या दुनिया भर में युवाओं की मृत्यु के टॉप थ्री कारणों में से एक है. WHO के अनुसार, हर साल लगभग दस लाख लोग आत्महत्या से मरते हैं और 20 गुना अधिक लोग सुसाइड अटेंप्ट करते हैं. वैश्विक मृत्यु दर प्रति 100,000 पर 16 है या हर 40 सेकंड में एक मौत और औसतन हर 3 सेकंड में एक सुसाइड अटेंप्ट होता है. सुसाइड रेट को प्रति एक लाख जनसंख्या पर 'जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने से होने वाली मौतों' की संख्या के रूप में देखा जाता है. 2011 तक उपलब्ध विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार, मालदीव में आत्महत्या की दर 0.7/100,000 और बेलारूस में 63.3/100,000 सुसाइड रेट है. 2009 में रिपोर्ट की गई 10.6/100,000 की दर (डब्ल्यूएचओ आत्महत्या दर) के साथ भारत आत्महत्या की दरों के घटते क्रम में 43वें स्थान पर है.
चिंताजनक है बच्चों का सुसाइड रेट राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या 2022 पर जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में 13,000 से अधिक छात्रों ने सुसाइड किया है. 2022 में आत्महत्या से होने वाली सभी मौतों में 7.6% छात्र थे. कुल मिलाकर, 2022 में 18 वर्ष से कम उम्र के 10,295 बच्चों ने आत्महत्या की है जिनमें लड़कों (4,616) की तुलना में लड़कियों (5,588) में आत्महत्या की संख्या थोड़ी अधिक थी. अगर क्लास वाइज बच्चों के सुसाइड परसेंटेज की बात करें तो आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं.
पिछले कुछ वर्षों में भारत में आत्महत्या की दरों में वृद्धि हुई है, हालांकि आत्महत्या की दरों में वृद्धि और गिरावट दोनों की प्रवृत्तियां मौजूद रही हैं. एक स्टडी से पता चला है कि भारत में आत्महत्या की दर 15-29 वर्ष आयु वर्ग (प्रति 100,000 जनसंख्या पर 38) में सबसे ज्यादा थी, इसके बाद 30-44 वर्ष समूह (प्रति 100,000 जनसंख्या पर 34) थी. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी अगस्त 2022 के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में भारत में कुल 1.64 लाख आत्महत्याएं दर्ज की गईं. संख्याएं चौंकाने वाली हैं क्योंकि वे प्रति एक लाख जनसंख्या की तुलना में 6.1 मामलों की वृद्धि दर्शाती हैं. 2020 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2021 में आत्महत्या की दर 12 प्रति एक लाख जनसंख्या दर्ज की गई, जबकि 2020 में यह दर 11.3 प्रति एक लाख जनसंख्या थी.
खराब परविश बना खतरा सलाहकार, मनोचिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ सत्यकांत त्रिवेदी ने aajtak.in इस इस गंभीर मुद्दे पर बात करते बताया कि आज के दौर में वर्किंग पेंरेंट्स में 'गिल्ट पेरेंटिंग' (ऐसे पेरेंट्स जो अपनी जिम्मेदारियों को लेकर झगड़ते हैं, एक-दूसरे की पेरेंटिग के तरीकों पर सवाल उठाते हैं और अपनी कमियों के कारण विफलता की भावनाओं का अनुभव करते हैं.) देखा जाता है, जो अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते. अपनी कमियों को भरने के लिए वीकेंड पर अपने बच्चों को मॉल या महंगे रेस्तरां में ले जाते हैं. एक्सपर्ट का मानना है कि यही भरपाई कभी-कभी महंगा साबित होता है. उन्होंने सलाह दी कि बच्चों को योजनाबद्ध तरीके से जीवन जीना सिखाया जाना चाहिए.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोटा कोचिंग संस्थानों पर रोक लगाने के लिए साफ-साफ इनकार कर दिया था और मां-बाप पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था, 'राजस्थान के कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं के लिए कोचिंग संस्थानों को दोषी ठहराना उचित नहीं है क्योंकि माता-पिता की उम्मीदें भी बच्चों को अपनी जीवनलीला समाप्त करने के लिए विवश कर रही हैं.'
बचा-कुचा काम सोशल मीडिया कर रहा है अगर हाल के महीनों की आत्महत्याओं पर नजर डालने से पता चलता है कि पढ़ाई या परीक्षा का दबाव ही एकमात्र कारण नहीं था. त्योहारों के आस-पास या छुट्टियों के दौरान भी आत्महत्या की घटनाएं सामने आई हैं. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा इस्तेमाल और परवरिश संबंधी खामियों के कारण बच्चे आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठा रहे हैं. विशेषज्ञ सत्यकांत त्रिवेदी बतातें कि छात्र आत्महत्या का दूसरा बड़ा कारण मीडिया भी है जो एक वर्ग द्वारा छात्र आत्महत्या के मामलों की वजह है.

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