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नरेंद्र गिरि बनाम आनंद गिरि, संपत्ति-सियासत-धर्म का कॉकटेल और एक महंत का मर जाना
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सनातनी मठ परंपरा में मुकाम हासिल करते हुए वह महंत नरेंद्र गिरि के नाम से पहचाने जाने लगे. समय बदला, हालात बदले और वह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष बन गए. भक्तों की लाइनें लंबी हो गईं. नेता आशीर्वाद लेने आने लगे. तबके इलाहाबाद और आज के प्रयागराज में कहा जाने लगा कि बड़े महंत जिस पर हाथ रख देते हैं उनके दिन संवर जाते हैं.
नरेंद्र गिरि को बचपन में गांव वाले ‘बुद्धू’ कहते थे. क्योंकि वह कम बोलते थे, सांसारिक कामों में उनका मन कम रमता था लेकिन गांव में आने वाले साधु-संतों से घुलमिल जाते थे. लोग ताने देते थे कि ‘बुद्धू’ कुछ नहीं कर पाएगा. इस तंज का दर्द या कुछ करने की तमन्ना, ‘बुद्धू’ ने घर छोड़ दिया. शायद वह अपने आपको स्वामी विवेकानंद समझते थे क्योंकि उनका भी असली नाम नरेंद्र नाथ था.
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