
नगालैंड में नागरिकों की हत्याओं के बाद पूर्वोत्तर में आफ़स्पा हटाने की मांग ने फ़िर ज़ोर पकड़ा
The Wire
बीते चार दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की कथित गोलीबारी में 14 आम लोगों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद विभिन्न छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों ने सेना को विशेष अधिकार देने वाले आफ़स्पा हटाने की मांग की है. मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा ने कहा है आफ़स्पा निरस्त किया जाना चाहिए.
गुवाहाटी/शिलॉन्ग/कोहिमा: नगालैंड में सुरक्षा बलों के 14 नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 यानी आफस्पा को वापस लेने की मांग जोर पकड़ने लगी है. AFSPA should be repealed
पहले ही कई नागरिक संगठन और इलाके के राजनेता वर्षों से अधिनियम की आड़ में सुरक्षा बलों पर ज्यादती का आरोप लगाते हुए इस कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. — Conrad Sangma (@SangmaConrad) December 6, 2021
नागरिक समूह, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पूर्वोत्तर क्षेत्र के नेता वर्षों से इस ‘कठोर’ कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और इस कानून की आड़ में सुरक्षा बलों पर ज्यादती करने का आरोप लगाते हैं. आफस्पा अशांत क्षेत्र बताए गए इलाकों में सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियां प्रदान करता है.
आफस्पा ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सेना और केंद्रीय बलों को कानून के खिलाफ काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, गिरफ्तारी और बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने का अधिकार देता है. साथ ही केंद्र की मंजूरी के बिना अभियोजन और कानूनी मुकदमों से बलों को सुरक्षा प्रदान करने की शक्ति देता है.