नए यथार्थ को स्वीकार करते हुए बुनियादी मूल्यों पर टिके रहकर ही कांग्रेस दोबारा खड़ी हो सकती है
The Wire
कांग्रेस अब भी राष्ट्रीय राजनीति में मायने रखती है, लेकिन उसे वक़्त के हिसाब से ख़ुद को नया रूप देते हुए धर्मनिरपेक्षता पर ध्यान केंद्रित करना होगा.
एक बार फिर कांग्रेस अपनी गाड़ी को पटरी पर लाने और अपनी सियासी किस्मत को चमकाने की कोशिश कर रही है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की शानदार जीत (या कहें भारतीय जनता पार्टी की करारी शिकस्त) के बाद दमक रहे राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के पिछले कुछ महीनों के दौरान सोनिया गांधी और हाल ही में गांधी परिवार के वारिसों राहुल और प्रियंका से मिलने की चर्चाएं हैं- और अगर मीडिया में लगाए जा रहे कयासों पर यकीन करें तो वे पार्टी में शामिल होंगे पार्टी के प्रस्तावित पुनरुद्धार में एक अहम भूमिका निभाएंगे. किशोर एक पेशेवर रणनीतिकार हैं और ज्यादातर पार्टियों को अपनी सेवाएं दे चुके हैं- भाजपा, जनता दल यूनाइटेड, तृणमूल कांग्रेस और यहां तक कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को भी. कुछ समय तक तो वे जनता दल यूनाइटेड में भी शामिल रहे लेकिन नीतीश कुमार के साथ मतभेद के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी. यह स्पष्ट है कि उनकी कोई विचारधारा नहीं है, लेकिन वे एक राजनीतिक भूमिका निभाना चाहते हैं. लेकिन कांग्रेस इतनी लुंज-पुंज क्यों है? किसी जमाने में सत्ता की स्वाभाविक पार्टी और भारतीय राजनीति की सर्वप्रमुख पार्टी रही कांग्रेस न सिर्फ अपनी चमक खो चुकी है, बल्कि यह पिछले दोनों आम चुनावों में महज 44 सीटों पर सिमट कर रह गई है. राज्य स्तरीय चुनावों में भी यह पिछड़ रही है और महाराष्ट्र जैसे राज्य में, जो कभी इसका गढ़ माना जाता था, यह किसी तरह से चौथे स्थान पर रह पाती है.More Related News