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... नए पाकिस्तान से पुराने में दाखिल हुए, स्वागत नहीं करोगे- वुसत का ब्लॉग
BBC
पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए कुर्सी गंवाने वाले पहले प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की विदाई पर वरिष्ठ पत्रकार वुसतुल्लाह ख़ान का ब्लॉग
ये ठीक है कि पाकिस्तान में आज तक किसी प्रधानमंत्री ने पांच वर्ष की मुद्दत पूरी नहीं की.
ये भी ठीक है कि कोई प्रधानमंत्री फ़ौज ने कान पकड़कर निकाला तो किसी को न्याय तंत्र ने दरवाज़ा दिखाया. मगर इमरान ख़ान को सिवाए विपक्ष के कोई भी घर नहीं भेजना चाहता था. यूं वो पहले प्रधामंत्री बन गए जिन्हें संविधान में लिखे गए तरीके के मुताबिक घर जाना पड़ा.
लेकिन ये भी इतनी आसानी से नहीं हुआ. शुरू शुरू में जब अविश्वास प्रस्ताव पार्टियामेंट में जमा कराया गया तो प्रधानमंत्री ने उसे मज़ाक समझते हुए कहा कि मैं तो ख़ुद ऊपर वाले से दुआ कर रहा था कि ऐसा कोई मौका आ जाए कि मैं विपक्ष के चोरों डाकुओं पर खुलकर हाथ डाल सकूं. जब मैं इस अविश्वास को विश्वास में बदलकर पार्टियामेंट से घर जाऊंगा तो मेरे हाथ खुल चुके होंगे और फिर मैं इन चोरों डाकुओं का वो हश्र करूंगा कि इनकी नस्लें तक याद रखेंगी.
ज्यों ज्यों दिन गुज़रते गए प्रधानमंत्री को लगने लगा कि मामला शायद थोड़ा सीरियस है. परंतु उन्होंने इसका तोड़ गद्दारी के पुराने चूरन से निकालने की कोशिश की और नारा लगा दिया कि ये सब अमेरिका करवा रहा है और भरे जलते में काग़ज भी लहराया.
बाद में पता चला कि ये गद्दारी कार्ड तो दरसअल वो इंटरनल मेमो है जिस वॉशिंगटन से पाकिस्तानी राजदूत ने एक अमेरिकी अफ़सर से मुलाक़ात का हाल भेजा है. इसमें वो शिकायतें थीं जो अमेरिका को पाकिस्तान से थीं और ऐसे सीक्रेट मेमो कभी भी खुलेआम नहीं लहराए जाते. उनसे विदेशी मामलों का दफ़्तर तयशुदा नियमों के हिसाब से निपटता है.