धर्मांतरित व्यक्ति पुराने धर्म की जाति का नहीं रहता, इसलिए आरक्षण का लाभ नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
The Wire
तमिलनाडु लोक सेवा आयोग के एक उम्मीदवार ने आयोग के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसके तहत उसे परीक्षा में ‘पिछड़ा वर्ग (मुस्लिम)’ न मानते हुए ‘सामान्य श्रेणी’ का माना गया था. याचिकाकर्ता का तर्क था कि चूंकि वह धर्मांतरण के पहले ‘सबसे पिछड़े वर्ग’ से ताल्लुक रखता था, इसलिए धर्मांतरण के बाद उसे मुस्लिमों पिछड़ा वर्ग के तहत लाभ मिलने चाहिए थे.
नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक व्यक्ति जिसने धर्म परिवर्तन करके दूसरा धर्म अपना लिया है, वह धर्मांतरण से पहले उसे मिलने वाले अपने समुदाय संबंधी लाभों पर दावा नहीं कर सकता है, जब तक कि राज्य द्वारा उसे इसकी अनुमति नहीं दी जाती है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मदुरै पीठ के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन तमिलनाडु लोक सेवा आयोग (टीएनपीएससी) के खिलाफ दायर एक उम्मीदवार की उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उसने आयोग के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसके तहत उसे संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा (द्वितीय समूह सेवाएं) में ‘पिछड़ा वर्ग (मुस्लिम)’ न मानते हुए ‘सामान्य श्रेणी’ का माना गया था.
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि क्या एक व्यक्ति जो दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गया है, उसे सामुदायिक आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है, यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है, इसलिए मामले पर फैसला हाईकोर्ट नहीं कर सकता.
अदालत ने कहा, ‘जैसा कि एस. यासमीन मामले में देखा गया है, एक व्यक्ति धर्मांतरण के बाद भी उस समुदाय में रहना जारी नहीं रख सकता, जिसमें उसने जन्म लिया था. क्या ऐसे व्यक्ति को धर्मांतरण के बाद भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए, यह एक ऐसा प्रश्न है जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. जब उच्चतम न्यायालय मामले पर विचार कर रहा है, तो यह अदालत याचिकाकर्ता के दावे को कायम नहीं रख सकती.’