द कश्मीर फाइल्स: पुराने जख़्म पर मरहम के बहाने नए ज़ख़्मों की तैयारी
The Wire
हालिया रिलीज़ फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में कश्मीरी पंडितों के बरसों पुराने दर्द को कंधा बनाकर और उस पर मरहम रखने के बहाने कैसे एक पूरे समुदाय विशेष को ही निशाना बनाया जा रहा है.
हाल ही में रिलीज़ हुई हिंदी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ इस समय विवादों में क्यों है, इसका सबसे संक्षिप्त जवाब इसी फिल्म के एक किरदार द्वारा कहे गए डायलॉग से बढ़कर और क्या हो सकता है कि ‘सच जब तक जूते पहनता है, झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर आ चुका होता है.’ ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने
यही तो सच है कि द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म के बहाने कैसे कई सारे सच को छिपाते हुए ढेर सारे झूठ का सहारा लिया गया, बाकायदा एक प्रोपेगंडा प्रोजेक्ट तैयार किया गया, कश्मीरी पंडितों का बरसों पुराना दर्द सामने लाने के नाम पर एक पूरे समुदाय पर निशाना साधा गया और लोगों का ब्रेनवॉश करके उनकी भावनाओं को इस तरह से भड़काया जा रहा है कि फिल्म देखकर मनोरंजन करने गए लोग दंगा करने पर उतारू हो रहे हैं, जब तक ऐसे अनेक सवालों के सही जवाब दिए जा सकते, तब तक कितनी ही घटनाएं घट चुकी हैं. लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई.
जिसकी वजह है यह फिल्म, द कश्मीर फाइल्स. ज़ाहिर है कि इस फिल्म को बनाने का और उससे भी बढ़कर जिस वक़्त में बनाने का जो मकसद है, वह ऐसी घटनाओं के ज़रिये हल हो रहा है. बनना ही है तो पुराने दर्द का मरहम बनिए,
इस फिल्म को देखने के बाद अनेक जगहों पर संवेदनशील घटनाएं लगातार घट रही हैं. कहीं फिल्म देखने के बाद थियेटर में बैठे लोग ही इस देश की हर समस्या, हर आतंकवाद का ज़िम्मेदार एक समुदाय-विशेष के लोगों को बता रहे हैं, कहीं फिल्म देखने के बाद आवेश में लोगों द्वारा बाकायदा स्पीच देकर ये आह्वान किया जा रहा है कि उक्त समुदाय-विशेष की औरतों से शादियां करके बच्चे पैदा करो और उनकी आबादी कम करो, क्योंकि जिस समय वे फिल्म देख रहे हैं, उस समय उस आबादी के लोग अपने घरों में, अपनी आबादी को बढ़ाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. नए दर्द की वजह नहीं.