![देश में फैली सांप्रदायिकता का वायरस अब अप्रवासी भारतीयों तक पहुंच गया है](https://thewirehindi.com/wp-content/uploads/2022/10/Leicester-peace-march.jpeg)
देश में फैली सांप्रदायिकता का वायरस अब अप्रवासी भारतीयों तक पहुंच गया है
The Wire
भारतीय अप्रवासी राजनीति अब भारत के ही सूरत-ए-हाल का अक्स है. वही ध्रुवीकरण, वही सोशल मीडिया अभियान, वही राजनीतिक और आधिकारिक संरक्षण और वैसी ही हिंसा. असहमति तो दूर की बात है, एक भिन्न नज़रिये को भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है.
लंबे समय तक दूसरे देशों में रहने वाले भारतीयों को ‘मॉडल अल्पसंख्यक’ कहा जाता था, जिनके पास उच्च स्तर की शिक्षा थी, अच्छी औसत आय और एक पेशवर कार्य संस्कृति थी. वे कानून का पालन करने वाले हैं और कर्मठ माने जाते हैं. वे अपने बच्चों को सिर्फ संस्कृति का पाठ ही नहीं पढ़ाते हैं बल्कि उन्हें अच्छे मूल्यों की शिक्षा भी देते हैं और शिक्षा का महत्व बताते हैं. वे स्पेलिंग बी प्रतियोगिताओं में भी बाजी मारते हैं.
लेकिन यह छवि दरक रही है और वह भी बहुत ही उग्र तरीके से. भारतीयों का जो पक्ष कभी नहीं देखा गया था, वह अचानक विस्फोट की तरह सबके सामने प्रकट हो गया है और स्थानीय प्रशासनों और राजनीतिज्ञों को इसने अचंभे में डाल दिया है.
बीते महीने ब्रिटेन के लीसेस्टर में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच हिंसा हुई. हिंदू समूहों ने ऑस्ट्रेलिया में सिखों पर हमला किया और न्यू जर्सी के चर्च को साध्वी ऋतंभरा के एक कार्यक्रम को विरोध के बाद रद्द करना पड़ा. उसी राज्य में स्थानीय भारतीय समुदायों द्वारा योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी के पोस्टरों से सजे बुलडोजरों के साथ किए गए एक मार्च का स्थानीय राजनीतिज्ञों द्वारा तीखी भर्त्सना की गई. भर्त्सना करनेवालों में दो सीनेटर भी थे.
लीसेस्टर की हिंसा ने स्थानीय लोगों को हिलाकर रख दिया था. उनका कहना था कि यह हमेशा से एक शांत शहर था, जिसमें हिंदू और मुस्लिम साथ मिलजुल कर रहते थे. स्थानीय सांसद क्लाउडिया वेब ने इस तरह की घटनाओं का प्रसार और भी जगहों पर होने की चेतावनी देते हुए इसका इल्जाम फ्रिंज एलीमेंट्स पर लगाया, जो इंग्लैंड में सिर उठा रही दक्षिणपंथी विचारधारा और उग्रवाद से प्रभावित हैं.