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देश के श्रमबल में महिलाओं के साथ होने वाली ग़ैर-बराबरी की जड़ें पितृसत्ता में छिपी हैं
The Wire
ऑक्सफैम की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारतीय श्रम बाज़ार में महिलाएं पुरुषों की तुलना में भागीदारी और मेहनताने- दोनों पहलुओं पर ग़ैर-बराबरी का सामना करती हैं. इसकी वजहें आर्थिक तो हैं ही, लेकिन इसका मूल समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में छिपा है.
कुछ दिनों पहले ही ऑक्सफैम की गैर-बराबरी पर रिपोर्ट (ऑक्सफैम्स इंडिया डिसक्रिमिनेशन रिपोर्ट- 2022) आई है जो श्रम बाजार में महिलाओं की गैर-बराबरी के बारे में बात कर रही है. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में श्रम शक्ति में हिस्सेदारी (लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन) और वेतन/मजदूरी में महिलाएं पुरुषों की तुलना में गैर-बराबरी का सामना करती है.
यह गैर-बराबरी शिक्षा में उनके बीच के अंतर से नहीं समझाई जा सकती. दूसरे शब्दों में इस गैर-बराबरी की जड़ें हमें हमारे पितृसत्तात्मक समाज में और श्रम बाजार के दूसरे आर्थिक-सामाजिक पहलुओं में खोजनी होगी. भारत में महिलाओं की श्रम शक्ति में हिस्सेदारी दूसरे देशों की तुलना में काफी कम रही है और पिछले दस सालों में और कम हुई है.
‘श्रम शक्ति में हिस्सेदारी’ जो महिलाएं कार्यरत है और जो काम खोज रही है उन दोनों को शामिल करके नापी जाती है. 2011-12 से 2018-19 के बीच ग्रामीण क्षेत्र में 25 साल से ऊपर की महिलाओं की हिस्सेदारी 36 % से घटकर 25 % हो गई जबकि शहरी क्षेत्र में यह 20 % के लगभग बनी रही (सर्वे ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट 2021, सेंटर फोर सस्टेनेबल एम्प्लायमेंट).
इस दौरान कोविड और देशव्यापी लॉकडाउन मार्च 2020 में लगने के साथ महिलाओं के रोजगार को एक बड़ा धक्का लगा. कोविड के दौरान सिर्फ 19% कार्यरत (एम्प्लायड) महिलाएं अपना रोजगार जारी रख पाई जबकि कार्यरत (एम्प्लायड) पुरुषों में से 61% किसी न किसी प्रकार के काम में लगे रहे.