देश की महिला क़ैदियों के बच्चे: वो दोषी नहीं हैं, लेकिन निरपराध ही सज़ा भुगत रहे हैं
The Wire
विशेष रिपोर्ट: जेल में सज़ा काट रही महिला क़ैदियों के साथ रहने वाले बच्चों को तो तमाम परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है, लेकिन वो जिन्हें मां से अलग कर बाहर अपने बलबूते जीने के लिए छोड़ दिया जाता है, उनके लिए भी परेशानियों का अंत नहीं होता.
यह आलेख ‘बार्ड‘ द प्रिजन प्रोजेक्ट’ सीरीज के हिस्से के तौर पर पुलित्जर सेंटर ऑन क्राइसिस रिपोर्टिंग के साथ भागीदारी में प्रस्तुत किया गया है.
मुंबई: पुलिस का एक बड़ा तलाशी दल जब रागिनी बाई की खोज करती हुई आई, उस समय वह एक निर्माण स्थल (कंस्ट्रक्शन साइट) पर थीं. उनके पति की निर्मम तरीके से हत्या की गई थी और शव एक जूट के बोरे में बंधा हुआ कई फीट ऊंचे निर्माण मलबे के भीतर पाया गया था.
पुलिस को शक था कि रागिनी बाई, एक अन्य पुरुष के साथ (पुलिस ने जिसे रागिनी का प्रेमी होने का दावा किया) इस हत्या में शामिल थीं. रागिनी बाई ने इन आरोपों का पुरजोर विरोध किया था. लेकिन उस समय उनकी मुख्य चिंता का कारण न पति की हुई हत्या था, न ही इस हत्या में शामिल होने को लेकर पुलिस का उन पर शक था. उस समय उन्हें अपने पांच साल के बेटे, जो मुंबई के बाहरी इलाके में स्थित तलोजा के निर्माण स्थल पर साये की तरह उनके साथ रहता था, की सलामती की चिंता ही खाए जा रही थी.
ओडिशा के सबसे पिछड़े जिलों में से एक कालाहांडी की दलित भूमिहीन मजदूर रागिनी को यह डर था कि पुलिस उनके बच्चे को लेकर चली जाएगी और वह फिर कभी उसे नहीं देख पाएगी. कुछ सूझ न पड़ते हुए रागिनी ने अपने बच्चे को एक महिला, जिसके बारे में उसका दावा था कि वह उसकी बहन है, को सौंप देने का आग्रह किया. कानूनी तौर पर पुलिस पर इस दावे का सत्यापन करने की जिम्मेदारी थी, जिसे निभाना जरूरी नहीं समझा गया.