
दिल्ली सरकार बनाम केंद्र की लड़़ाई तेज, SC में बोले सिंघवी- कैबिनेट मंत्री और सीएम की एक जैसी हैसियत
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दिल्ली सरकार बनाम केंद्र की जंग तेज होती जा रही है. अधिकारों को लेकर छिड़ी जंग अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है, जहां पर तीखी बहस देखने को मिली है. दिल्ली सरकार की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी दलील रख रहे हैं, तो केंद्र का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे हैं.
GNCTD (संशोधन) अधिनियम 2021 (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम 2021) के खिलाफ दिल्ली सरकार का हमला जारी है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है और अपने अधिकारों के लिए दिल्ली सरकार लगातार लड़ रही है. दिल्ली सरकार की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी दलील रख रहे हैं, तो केंद्र का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता रख रहे हैं.
क्या है ये GNCTD एक्ट?
जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (संशोधन) अधिनियम 2021 के प्रभावी होने के बाद से, दिल्ली में सरकार का मतलब 'उपराज्यपाल' कर दिया गया है. इस वजह से दिल्ली विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक को मंज़ूरी देने की ताकत उपराज्यपाल के पास रहने वाली है. इसके अलावा दूसरे फैसलों में भी उपराज्यपाल की सलाह लेनी पड़ेगी. अब इसी बदलाव के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
दिल्ली सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी की दलील दी है कि दिल्ली का बाकी केंद्रशासित प्रदेशों से बिल्कुल अलग संवैधानिक दर्जा है. सिर्फ तीन विषयों को छोड़कर ये दिल्ली पूर्ण राज्य है. यहां की सरकार बाकी अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार से अधिक अधिकृत है. सिंघवी ने 239 और 239 A a का जिक्र किया और केंद्र सरकार की सीमाएं बताईं. उनकी तरफ से सर्विसेज यानी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले के अधिकारियों की व्याख्या की गई.
दिल्ली सरकार क्यों नाराज?
सिंघवी ने दलील दी कि अगर अनुच्छेद 239aa केन्द्र सरकार को दिल्ली के लिए भी कानून बनाने का अधिकार देता हैं, तो क्या ये राज्य के अधिकारों में कटौती नहीं है? मेरा सवाल यही है. फर्ज करें कि मेघालय विधान सभा केंद्र की नीति से उलट अपने यहां कोई कानून बना सकती है, लेकिन दिल्ली विधान सभा नहीं. फिलहाल दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले के अधिकारों को लेकर कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है.

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