दिल्ली में एमसीडी की स्थायी समिति क्यों है मेयर से भी ज्यादा ताकतवर?
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दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों में विस्तार किया गया है और इससे स्थायी समिति बड़े बदलाव की संभावना है. एलजी को दिए गए नए अधिकारों ने राजनीतिक ध्रुवीकरण को और बढ़ावा दिया है. आने वाले चुनाव और भी दिलचस्प हो सकते हैं, क्योंकि ये मुद्दे सत्ता संतुलन को सीधे तौर पर प्रभावित करेंगे. आइए आपको बताते हैं कि आखिर स्थायी समिति और मेयर में क्या फर्क है और दोनों के कामकाज में क्या अंतर है.
केंद्र सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की शक्तियों में बड़ा विस्तार किया है. 2 सितंबर को जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, अब किसी भी बोर्ड, आयोग, प्राधिकरण या वैधानिक निकाय के गठन और उनमे अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल को सौंप दिया गया है. यह अधिकार पहले राष्ट्रपति के पास था.
इस बदलाव से इन निकायों के भीतर किसी भी अधिकारी को नियुक्त करने की शक्ति भी एलजी के पास आ गई है. उपराज्यपाल की शक्तियों में इस विस्तार से दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे में एक बड़े बदलाव की संभावना बढ़ गई है.
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स्थायी समिति क्यों अहम है?
दिल्ली नगर निगम की स्टैंडिंग कमेटी एक अहम नीति-निर्माण समिति है. इसमें 18 निर्वाचित पार्षद होते हैं, जिनमें से 12 दिल्ली के विभिन्न जोनों से चुने जाते हैं और 6 सदस्यों का चुनाव सीधे एमसीडी सदन द्वारा होता है. यह समिति वित्तीय और प्रशासनिक मामलों में फैसले लेने में अहम भूमिका अदा करती है और नगर निगम के कामकाज को सुचारू रूप से मैनेज करती है.
स्थायी समिति और मेयर के बीच अंतर
गाजियाबाद की एक महिला की हत्या उसके पूर्व पति द्वारा की गई. वीरेंद्र शर्मा ने अपनी पूर्व पत्नी मधु शर्मा को हरिद्वार ले जाकर उसकी हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को पत्थरों से दबा दिया गया. वीरेंद्र ने मधु को मंदिर दर्शन के बहाने बुलाया था. हत्या का कारण मधु द्वारा अदालत में दायर किया गया गुजारा भत्ता का मुकदमा था. पुलिस ने वीरेंद्र को गिरफ्तार कर लिया है और उसकी निशानदेही पर लाश बरामद कर ली गई है.
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