
दिल्ली के एम्स में हार्ट ट्रांसप्लांट गेम्स की हुई शुरुआत, जागरूकता फैलाना है लक्ष्य
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ट्रांसप्लांट गेम्स में जिन लोगो के हार्ट ट्रांसप्लांट हुए उनके साथ साथ दिल्ली ऐम्स के डॉक्टर्स ने भी भाग लिया. गेम्स में भाग लेने वाला हर व्यक्ति इस तथ्य का परिचायक है कि ऑर्गन फेलियर का उपचार करने में ट्रांस्प्लांटेशन सर्जरी में कितनी परिवर्तनकारी शक्ति होती है.
ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के कार्डियोथोरेसिक एवं न्यूरोसाइंस सेंटर ने रविवार को नई दिल्ली में सबसे पहले ट्रांसप्लांट गेम्स आयोजित किए. इस आयोजन से हार्ट फेलियर के इलाज में अंग दान के महत्व के बारे में जागरुकता बढ़ाई गई तथा हृदय प्रत्यारोपण करवाने वाले मरीजों की प्रत्यारोपण पक्षात् सेहत का जश्न मनाया गया.
ये गेम्स राष्ट्रीय हृदय प्रत्यारोपण दिवस (3) अगस्त) से पहले आयोजित किए गए हैं. गौरतलब है कि 3 अगस्त 1994 को एम्स में पहली बार सफलतापूर्वक हृदय प्रत्यारोपण किया गया था, जिसमें एक मृतक का दिल एक मरीज के शरीर में लगाने में कामयाबी मिली थी.
ट्रांसप्लांट गेम्स में जिन लोगो के हार्ट ट्रांसप्लांट हुए उनके साथ साथ दिल्ली ऐम्स के डॉक्टर्स ने भी भाग लिया. गेम्स में भाग लेने वाला हर व्यक्ति इस तथ्य का परिचायक है कि ऑर्गन फेलियर का उपचार करने में ट्रांस्प्लांटेशन सर्जरी में कितनी परिवर्तनकारी शक्ति होती है.
एम्स के निदेशक डॉ एम श्रीनिवास ने कहा, 'हृदय मानव शरीर के सबसे अहम अंगों में से एक है और इसका फेल हो जाना जानलेवा स्थिति हो सकती है. हमें एम्स की टीम पर गर्व है जिन्होंने 85 कामयाब हृदय प्रत्यारोपण किए हैं, जो कि उल्लेखनीय उपलब्धि है. हम उन रोगियों को सहयोग देने को प्रतिबद्ध हैं जो प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं. ट्रांस्प्लांट गेम्स का जश्न मनाकर हम न केवल हृदय प्रत्यारोपण द्वारा बचाई जिंदगियों का जश्न मनाते हैं, बल्कि अंगदान के महत्व के बारे में जागरुकता फैलाने की अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि भी करते हैं.
हृदय प्रत्यारोपण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ये बीमारियां हमारे देश में मृत्यु एवं अपंगता की बड़ी वजह है. भारत में तकरीबन एक करोड़ लोग हार्ट फेलियर से जूझते हैं. जिनमें से 50,000 को हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत होती है. किंतु भारत में प्रति वर्ष मात्र 90-100 हृदय प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं. यानी जरूरतमंद मरीजों में से लगभग 0.2 प्रतिशत ही इस जीवन रक्षक प्रक्रिया से गुजर पाते हैं.
इस मुद्दे पर जागरुकता की कमी के चलते अंग दान बहुत कम होना एक बड़ा कारक है. यही वजह है कि ट्रांसप्लांट की मांग और उसके लिए उपलब्ध अंगों के बीच इतना बड़ा फासला है.

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