
दिल्ली की 7 सीटें तय करती हैं केंद्र की कुर्सी! जो यहां जीता, उसकी ही बनी सरकार, समझें- सियासी गणित
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माना जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता दिल्ली की सात लोकसभा सीटों से होकर गुजरता है. जो भी पार्टी दिल्ली की सभी सीटों पर कब्जा कर लेती है, केंद्र में उसकी ही सरकार बनती है. पिछले चुनावों के नतीजे बताते हैं कि दिल्ली में जिस भी पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, केंद्र में उसकी ही सरकार बनती है.
लोकसभा चुनाव अब अपने आखिरी दौर में है. 1 जून को आखिरी चरण की वोटिंग के साथ ही चुनाव खत्म हो जाएगा. और 4 जून को नतीजे आ जाएंगे. लेकिन उससे पहले ही राजनीतिक हल्कों में अगली सरकार को लेकर अलग-अलग भविष्यवाणियां और दावे किए जा रहे हैं. लेकिन अगली सरकार को लेकर सबसे सटीक भविष्यवाणी इस बात से की जा सकती है कि दिल्ली की सभी सीटों पर किस पार्टी ने जीत हासिल की?
17 लोकसभा चुनावों में से 9 बार दिल्ली की सभी सीटों पर एक ही पार्टी ने जीत हासिल की है. पिछले लोकसभा चुनावों की नतीजों के विश्लेषण से पता चलता है कि 1967, 1989 और 1991 को छोड़ दिया जाए, तो हर बार जिस भी पार्टी ने दिल्ली में सबसे ज्यादा सीटें हासिल कीं, केंद्र में सरकार उसकी ही बनी.
1952 से 1962 तक
1952 में जब पहले लोकसभा चुनाव हुए, तब दिल्ली में तीन ही सीट थी. इनमें से एक सीट पर दो सांसद चुने जाते थे. कांग्रेस ने तीन पर कब्जा कर लिया और केंद्र में पहली सरकार बनाई. 1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या चार हो गई और सभी पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. 1962 में सीटें बढ़कर पांच हो गईं और कांग्रेस ने एक बार फिर सभी सीटों पर कब्जा कर लिया. 1957 और 1962 में कांग्रेस ने दिल्ली के सभी सीटें जीतीं और केंद्र में अपनी सरकार बरकरार रखी.
1967 से 1989 तक
1967 में दिल्ली में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 7 हो गई. इस चुनाव में भारतीय जन संघ ने 6 सीटें जीत लीं. कांग्रेस महज एक सीट जीत सकी. हालांकि, कांग्रेस केंद्र में अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही. 1967 वो साल था, जब पहली बार कांग्रेस के प्रभुत्व को चुनौती मिली थी.

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